मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी ने ‘आईसी’ नाम का एक एप बनाया है। यह एप कलाई पर बंधे बैंड या स्मार्टफोन की मदद से काम करता है
नई दिल्ली। डिप्रेशन एक ऐसी समस्या है, जिसे जितना जल्दी समझ लिया जाए, उतना ही जल्दी उससे छुटकारा पाया जा सकता है। जैसे-जैसे यह डिजीज क्रॉनिक होती है, उससे निबटना मुश्किल होता जाता है। कॉलेज एक ऐसी जगह है जहां बच्चे किताबी ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान भी लेते हैं। यहां आने वाले बच्चे भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार होते हैं। पर इन दिनों देखा जा रहा है कि छात्रों में बहुत तेजी से अवसाद बढ़ रहा है। कॉलेज के युवाओं में अवसाद की बढ़ती समस्या से निबटना विशेषज्ञों के लिए बड़ी चुनौती बन गई है।
मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी ने बनाया एप
इसी समस्या से निबटने के लिए मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी ने ‘आईसी’ नाम का एक एप बनाया है। यह एप कलाई पर बंधे बैंड या स्मार्टफोन की मदद से काम करता है। इसकी मदद से टीचर यह समझ पाएंगे कि कौन-सा बच्चा डिप्रेशन से जूझ रहा है और खुद स्टूडेंट भी यह जान पाएंगे कि इस तनाव की स्थिति से उन्हें कैसे निबटना है। इस एप का निर्माण नेशनल साइंस फाउंडेशन द्वारा दिए गए अनुदान से किया गया है। एक अध्ययन के अनुसार 2005 में करीब 9 प्रतिशत व 2014 में 11 प्रतिशत किशोर डिप्रेशन के शिकार हैं।
इस एप से व्यक्ति की गतिविधियों का आकलन किया जा सकेगा
इस एप के माध्यम से किसी व्यक्ति की शारीरिक गतिविधियों, सामाजिक व्यवहार, नींद की आदतें, उनकी डाइट और यात्रा करने के व्यवहार आदि का आकलन किया जा सकेगा। इस एकत्रित किए गए डेटा की मदद से यह पहचान कर ली जाएगी कि उस व्यक्ति में अवसाद का स्तर क्या है और इलाज के लिए उसे चिकित्सकीय मदद की आवश्यकता है या नहीं।
एप के द्वारा स्टूडेंट के बारे में सटीक जानकारी मिलेगी
इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर मी झांग का कहना है कि हमारी इस तकनीक की मदद से कॉलेज के काउंसलिंग सेंटर्स के पास हर स्टूडेंट के बारे में सटीक और संवेदनशील जानकारी होगी। इससे उनके अवसाद को सही समय पर पहचानने में मदद मिलेगी। इस एप की मदद से यह समझना आसान होगा कि आखिर स्टूडेंट किस मनोदशा से गुजर रहे हैं और उन्हें किस स्तर पर किस तरह की मदद की जरूरत है।