बॉलीवुड एक्टर आमिर खान, शाहरुख खान द्वारा देश में बढ़ती असहिष्णुता को लेकर दिए बयान पर हुए विवाद के बीच अभिनेत्री नंदिता दास ने भी देश के हालात पर चिंता जताई है
पणजी। बॉलीवुड एक्टर आमिर खान, शाहरुख खान जैसे फेमस एक्टर्स द्वारा देश में बढ़ती असहिष्णुता को लेकर दिए बयान पर हुए विवाद के बीच अभिनेत्री नंदिता दास ने भी देश के हालात पर चिंता जताई है।
उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक अब खतरनाक मोड़ ले रही है और इसके खिलाफ आवाज उठाना, जोरदार तरीके से उठाना ही एकमात्र रास्ता है। उनका कहना है कि समूचे देश को एक साथ मिलकर हल्ला-हंगामे के बीच खो रहे लोकतंत्र को बचाने की जरूरत है।
एक इंटरव्यू में नंदिता ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इससे पहले अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता पर कभी इस तरह का खतरा आया हो। इससे डरने के बजाय इसका मुकाबला करने की जरूरत है। यह समय आवाज उठाने का है और अगर हममें से कई लोग जब अपनी आवाज एक साथ उठाएंगे तो कोई अलग-थलग नहीं पड़ेगा।
दोस्तों ने असहिष्णुता पर बोलने से किया मना
नंदिता ने बताया कि उनके दोस्तों ने उन्हें इस मुद्दे पर बोलने से मना किया है, उन्हें मेरी जान की परवाह है। मैं अपने मन की बात बोलने से डरूं क्यों? लेकिन, मैंने डर का यह स्तर इससे पहले कभी नहीं देखा और मैं सोचती हूं कि हम सभी को उस लोकतंत्र को बचाने के लिए एकजुट होकर आगे आना चाहिए जिसकी हम कीमत नहीं समझते।
नंदिता ने बेहतरी की उम्मीद भी जताई। उनका कहना है कि देश में सब कुछ निराशाजनक नहीं है। देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एजेंडों पर चल रहे काम और इसे झुठलाते जाने की सत्ताधारियों की मजबूरी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा हमें यह याद रखना चाहिए कि कुछ लोग जोर-जोर से चिल्लाते हैं लेकिन वे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते। मुझे लगता है कि देश आज भी धर्मनिरपेक्ष है। लोग प्रेम, शांति और भाईचारे के साथ मिलजुल कर रहना चाहते हैं। अलग-अलग संस्कृति के लोग एक साथ मिलकर रहते हैं।
फायर जैसी बोल्ड फिल्मों के लिए विरोध झेल चुकी नंदिता का कहना है कि यह समस्या नई नहीं है लेकिन, समय के साथ इसमें तेजी आई है। दुख की बात है कि हम खुद पर ही सेंसर लगा रहे हैं। पिछले एक साल में हालात बिगड़े हैं। नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसारे और एम.एम. कलबुर्गी जैसे बुद्धिजीवियों की हत्या अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता और तर्क की वजह से कर दी गई। इस पर यकीन नहीं होता।
लोगों की आवाज दबाई जा रही है
एम एफ हुसैन की पेंटिंग पर हंगामा और तमिल लेखक पेरूमल मुरुगन की किताब पर प्रतिबंध लगने जैसी घटनाओं को याद करते हुए नंदिता ने कहा देश में यह क्या हो रहा है, हर दूसरे दिन आपको ऐसी ही खबरें सुनने को मिलती हैं। लोगों की आवाज को दबाया जा रहा है। लोकतंत्र में आपके पास बोलने के साथ ही असहमति जताने का अधिकार भी होना चाहिए।
नंदिता की पहचान उनकी फिल्मों की वजह से अंतरराष्ट्री स्तर पर भी है। उनसे पूछा गया कि क्या इन बातों से भारत की छवि बदली है।0 जवाब में नंदिता ने कहा विदेश में लोग आश्चर्य में हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि हमारा समाज बहुलतावादी और विविध है। सांस्कृतिक रूप से हम समृद्ध हैं। लेकिन, रूढ़िवादी और असहिष्णु होकर हम दुनिया को यह बता रहे हैं कि हम आग नहीं बढ़ रहे हैं बल्कि पीछे जा रहे हैं।
उन्होंने कहा हर देश की अपनी अच्छाइयां और बुराइयां होती हैं. इसलिए हमें अधिक ईमानदारी के साथ दुनिया के सामने अपने देश का चित्रण करना चाहिए।