आनंद बक्षी के सदाबाहर गीतों ने किया मदहोश
अपने वजूद को
तलाशते आनंद को लगभग सात वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करना पडा
मशहूर कवि और गीतकार आनंद बक्षी का जन्म 21 जुलाई 1930 को पाकिस्तान के रावलपिंडी में हुआ था। बंटवारे के बाद वे भारत में शिफ्ट हो गए। आनंद को 1958 में ब्रिज मोहन की फिल्म “भला आदमी” में सॉन्ग लिखने का मौका मिला। उन्होंने इस फिल्म के लिए 4 गाने लिखे।
हालांकि इस फिल्म के जरिए वह पहचान बनाने में सफल नहीं हो पाए, लेकिन एक गीतकार के रूप में उनके सिने करियर का सफर शुरू हो गया। अपने वजूद को तलाशते आनंद को लगभग सात वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करना पडा। वर्ष 1965 में “जब जब फूल खिले” प्रदर्शित हुई तो उन्हें उनके गाने “परदेसियों से न अंखियां मिलाना”, “ये समां, समां है ये प्यार का” सुपरहिट रहे और गीतकार के रूप में उनकी पहचान बन गई।
इसी वर्ष फिल्म “हिमालय की गोद में” उनके गीत “चांद सी महबूबा हो मेरी कब ऎसा मैंने सोचा था” को भी लोगों ने काफी पसंद किया। इसके बाद उन्होंने “सावन का महीना पवन कर शोर”, “युग युग तक हम गीत मिलन के गाते रहेंगे”, “राम करे ऎसा हो जाये” जैसे सदाबहार गानों के जरिये उन्होंने गीतकार के रूप में नयी ऊंचाइयों को छू लिया। बाद में आनंद को दिल और फेफड़ों की बीमारी हो गई। एक हार्ट सर्जरी के दौरान उन्हें बैक्टिरियल इंफेक्शन हो गया और 30 मार्च 2002 तो आनंद दुनिया को अलविदा कह गए।
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