देव आनंद ने एक दौर में व्हाइट शर्ट और ब्लैक कोट को इतना पॉपुलर कर दिया था कि लोग उन्हें कॉपी करने लगे
मुंबई। हिन्दी फिल्मों के सुपर स्टार रहे देव आनंद अपने समकालीन एक्टरों से हमेशा अलग थे। बॉलीवुड में कई हीरो आए लेकिन देव साहब को टक्कर देने वालों की गिनती बहुत कम थी। देव आनंद को हिन्दी सिनेमा का लीजेंड कहा जाता है। 26 सितंबर को देव आनंद की बर्थ एनिवर्सरी है। इसी दिन 1923 में देब साहब का जन्म पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था।
देव आनंद अपने दौर के फैशन आइकन रहे हैं। देव आनंद को लेकर कई तरह के किस्से मशहूर हैं, लेकिन इन सबसे खास है उनके काले कोट पहनने से जुड़ा किस्सा। देव साहब के काले पहनने पर कोर्ट ने बैन लगा दिया था। देव आनंद ने एक दौर में व्हाइट शर्ट और ब्लैक कोट को इतना पॉपुलर कर दिया था कि लोग उन्हें कॉपी करने लगे। फिर एक दौर आया जब देव आनंद पर पब्लिक प्लेसेस पर काला कोट पहनने पर बैन लग गया।
हिंदी सिनेमा में तकरीबन छह दशक तक दर्शकों पर अपनी अदाकारी का जादू बिखेरने वाले देव आनंद को एक्टर बनने के लिए कई तरह की कोशिशें करनी पड़ीं। दिलचस्प बात यह है कि जब देव आनंद मुंबई पहुंचे तब उनके पास मात्र 30 रुपए थे। आइये आपको बताते हैं देव साहब से जुड़े कुछ और रोचक किस्से…
देव आनंद अपने काले कोट की वजह से बहुत सुर्खियों में रहे। इसकी वजह बेहद दिलचस्प और थोड़ी अजीब भी थी। दरअसल कुछ लड़कियों के उनके काले कोट पहनने के दौरान आत्महत्या की घटनाएं सामने आईं। ऐसा शायद ही कोई एक्टर हो जिसके लिए इस हद तक दीवानगी देखी गई और कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा।
देव आनंद का असली नाम धर्मदेव पिशोरीमल आनंद था। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातक 1942 में लाहौर से किया था। देव आनंद आगे भी पढऩा चाहते थे, लेकिन उनके पिता ने कह दिया कि उनके पास उन्हें पढ़ाने के लिए पैसे नहीं हैं। अगर वह आगे पढऩा चाहते हैं तो नौकरी कर लें। यहीं से उनका और बॉलीवुड का सफर भी शुरू हो गया। 1943 में अपने सपनों को साकार करने के लिए जब वह मुंबई पहुंचे। तब उनके पास मात्र 30 रुपए थे और रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था। देव आनंद ने मुंबई पहुंचकर रेलवे स्टेशन के समीप ही एक सस्ते से होटल में कमरा किराए पर लिया। उस कमरे में उनके साथ तीन अन्य लोग भी रहते थे जो उनकी तरह ही फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। काफी दिन यूं ही गुजर गए। उनके पास पैसा खत्म हो रहा था और तब उन्होंने सोचा कि अगर उन्हें मुंबई में रहना है तो नौकरी करनी ही पड़ेगी। यह बात उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफी रोमांसिंग विद लाइफ में बताई है।
काफी मशक्कत के बाद उन्हें मिलिट्री सेंसर ऑफिस में क्लर्क की नौकरी मिल गई। यहां उन्हें सैनिकों की चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़कर सुनाना होता था। मिलिट्री सेंसर ऑफिस में देव आनंद को 165 रुपए मासिक वेतन मिलना था। इसमें से 45 रुपए वह अपने परिवार के खर्च के लिए भेज देते थे। लगभग एक साल तक मिलिट्री सेंसर में नौकरी करने के बाद वह अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास चले गए जो उस समय भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से जुड़े हुए थे। उन्होंने देव आनंद को भी अपने साथ इप्टा में शामिल कर लिया। इस बीच देव आनंद ने नाटकों में छोटे-मोटे रोल किए।
देव आनंद को पहला ब्रेक 1946 में प्रभात स्टूडियो की फिल्म हम एक हैं से मिला। हालांकि फिल्म फ्लॉप होने से दर्शकों के बीच वह अपनी पहचान नहीं बना सके। इस फिल्म के निर्माण के दौरान ही प्रभात स्टूडियो में उनकी मुलाकात गुरुदत्त से हुई जो उस समय फिल्मों में कोरियोग्राफर के रूप में अपनी पहचान बनाना चाह रहे थे। वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म जिद्दी देव आनंद के फिल्मी करियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई। फिल्म की कामयाबी के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा और नवकेतन बैनर की स्थापना की। नवकेतन के बैनर तले उन्होंने वर्ष 1950 में अपनी पहली फिल्म अफसर का निर्माण किया जिसके निर्देशन की जिम्मेदारी उन्होंने अपने बड़े भाई चेतन आनंद को सौंपी। इस फिल्म के लिए उन्होंने उस जमाने की जानी-मानी एक्ट्रेय सुरैया का चयन किया, जबकि अभिनेता के रूप में देव आनंद खुद ही थे। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से असफल रही।
देव आनंद ने अपनी अगली फिल्म बाजी के निर्देशन की जिम्मेदारी गुरुदत्त को सौंप दी। बाजी फिल्म की सफलता के बाद देव आनंद फिल्म इंडस्ट्री में एक अच्छे अभिनेता के रूप में शुमार होने लगे। इस बीच देव आनंद ने मुनीम जी, दुश्मन, कालाबाजार, सी.आई.डी, पेइंग गेस्ट, गैम्बलर, तेरे घर के सामने, काला पानी जैसी कई सफल फिल्में दी।
फिल्म अफसर के निर्माण के दौरान देव आनंद का झुकाव फिल्म अभिनेत्री सुरैया की ओर हो गया था। एक गाने की शूटिंग के दौरान देव आनंद और सुरैया की नाव पानी में पलट गई जिसमें उन्होंने सुरैया को डूबने से बचाया। इसके बाद सुरैया देव आनंद से बेइंतहा मोहब्बत करने लगीं, लेकिन सुरैया की दादी की इजाजत न मिलने पर यह जोड़ी टूट गई। 1954 में देव आनंद ने अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से शादी कर ली। वर्ष 2005 में जब सुरैया का निधन हुआ तो देव आनंद उन लोगों में से एक थे जो उनके जनाजे के साथ थे।
वर्ष 1970 में फिल्म प्रेम पुजारी के साथ देव आनंद ने निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रख दिया। हालांकि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से नकार दी गई बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। इसके बाद वर्ष 1971 में फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा का भी निर्देशन किया और इसकी कामयाबी के बाद उन्होंने अपनी कई फिल्मों का निर्देशन भी किया। इन फिल्मों में हीरा पन्ना, देश परदेस, लूटमार, स्वामी दादा, सच्चे का बोलबाला, अव्वल नंबर जैसी फिल्में शामिल हैं।
देव आनंद ने कल्पना कार्तिक के साथ शादी की थी, लेकिन उनकी शादी अधिक समय तक सफल नहीं हो सकी। दोनों साथ रहे, लेकिन बाद में कल्पना ने एकाकी जीवन को गले लगा लिया। दूसरे एक्टर्स की तरह देव आनंद ने भी अपने बेटे सुनील आनंद को फिल्मों में स्थापित करने के लिए बहुत प्रयास किए, लेकिन सफल नहीं हो सके।
वर्ष 2001 में देव आनंद को भारत सरकार की ओर से पद्मभूषण सम्मान प्राप्त हुआ। वर्ष 2002 में उनके द्वारा हिन्दी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 3 दिसंबर 2011 को इस सदाबहार अभिनेता ने लदंन में अपनी अंतिम सांस ली।