Death anniversary: कॉमेडी एक्टर जॉनी वाकर ने हिन्दी सिनेमा में 5 दशक तक दर्शकों को हंसाया
अपने जबरदस्त कॉमिक अभिनय से दर्शको के दिलों में गुदगुदी पैदा करने वाले हंसी के
बादशाह जानी…
अपने जबरदस्त कॉमिक अभिनय से दर्शको के दिलों में गुदगुदी पैदा करने वाले हंसी के बादशाह जानी वाकर को बतौर हिन्दी सिनेमा के पहले कॉमिक स्टार के रूप में जाना जाता है। हालांकि उन्हें इस जगह तक पहुंचने के लिए बस कंडक्टर की नौकरी भी करनी पड़ी थी। मध्यप्रदेश के इंदौर शहर मे एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्मे बरूदीन जमालुदीन काजी उफ ü जानी वाकर बचपन के दिनों से ही अभिनेता बनने का ख्वाब देखा करते थे।
मुंबई मे उनके पिता के एक जानने वाले पुलिस इंस्पेक्टर की सिफारिश पर जानी वाकर को बस कंडक्टर की नौकरी मिल गई। इस नौकरी को पाकर जानी वाकर काफी खुश हो गए क्योंकि उन्हें मुफ्त में ही पूरी मुंबई घूमने को मौका मिल जाया करता था इसके साथ ही उन्हें मुंबई के स्टूडियो मे भी जाने का मौका मिल जाया करता था। इसी दौरान जानी वाकर की मुलाकात फिल्म जगत के मशहूर खलनायक एन.ए.अंसारी और के आसिफ के सचिव रफीक से हुई। लंबे संघर्ष के बाद जानी वाकर को फिल्म अखिरी पैमाने में एक छोटा सा रोल मिला।
उसी समय अभिनेता बलराज साहनी की नजर जानी वाकर पर पड़ी, उन्होंने जानी को गुरूदत्त से मिलने की सलाह दी। गुरूदत्त ने जॉनी वाकर की प्रतिभा से खुश होकर अपनी फिल्म बाजी में काम करने का अवसर दिया। इसके बाद उन्होंने मुड़कर पीछे नहीं देखा। उसके बाद जानी वाकर ने गुरूदत्त की कई फिल्मों मे काम किया जिनमें आर पार, मिस्टर एंड मिसेज 55, प्यासा, चौदहवी का चांद, कागज के फूल जैसी सुपर हिट फिल्में शामिल हैं। गुरूदत्त की फिल्मों के अलावा जानी वाकर ने टैक्सी ड्राइवर, देवदास, नया अंदाज, चोरी चोरी, मधुमति, मुगले आजम, मेरे महबूब, बहू बेगम, मेरे हजूर जैसी कई सुपरहिट फिल्मों मे अपने हास्य अभिनय से दर्शको का भरपूर मनोरंजन कि या।
जानी वाकर की हर फिल्म मे एक या दो गीत उनपर अवश्य फिल्माए जाते थे जो काफी लोकप्रिय भी हुआ करते थे। वर्ष 1956 मे प्रदर्शित गुरूदत्त की फिल्म सी.आई.डी में उन पर फिल्माया गाना ऎ दिल है मुश्किल जीना यहां, जरा हट के जरा बच के ये है बंबई मेरी जान ने पूरे भारत वर्ष मे धूम मचा दी। इसके बाद हर फिल्म में जानी वाकर पर गीत अवश्य फिल्माए जाते रहे। यहां तक कि फाइनेंसर और डिस्ट्रीब्यूटर की यह शर्त रहती कि फिल्म मे जानी वाकर पर एक गाना अवश्य होना चाहिए।
फिल्म मधुमति तथा शिकार के लिए उन्हें दो बार फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया। 70 के दशक मे जानी वाकर ने फिल्मों मे काम करना काफी कम कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि फिल्मों मे कॉमेडी का स्तर काफी गिर गया है। इसी दौरान रिषिकेष मुखर्जी की फिल्म आनंद मे जानी वाकर ने एक छोटी सी भूमिका निभाई। इस फिल्म के एक दृश्य मे वह राजेश खन्ना को जीवन का एक ऎसा दर्शन कराते है कि दर्शक अचानक हंसते हंसते संजीदा हो जाता है। इसके बाद उन्हें कई फिल्मों मे अभिनय करने के प्रस्ताव मिले जिन्हें जानी वाकर ने इंकार कर दिया।
परन्तु गुलजार और कमल हसन के बहुत जोर देने पर वर्ष 1998 मे प्रदर्शित फिल्म चाची 420 मे उन्होंने एक छोटा सा रोल निभाया जो दर्शको को काफी पसंद आया। जानी वाकर ने अपने पांच दशक लंबे सिने करियर मे लगभग 300 फिल्मो में काम किया। अपने विशिष्ट अंदाज और हाव भाव से लगभग चार दशक तक दर्शको का मनोरंजन करने वाले महान हास्य कलाकार जानी वाकर 29 जुलाई 2003 को इस दुनिया से रूखसत हो गए।
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