नैनवां. आश्विन माह में नैनवां में एक पखवाड़े तक चलने वाले पशु व व्यापारिक मेले का अब स्वरूप बदल गया। मेले में एक दशक पहले तक खरीद -फरोख्त के लिए हजारों की संख्या में बैल आया करते थे। अब मशीनी युग और प्रदेश में बढ़ी गोवंश तस्करी ने इनकी संख्या नगण्य कर दी।
घोड़ा-घोड़ी व ऊंटों के आने से जरूर कुछ चहल-पहल रहने लगी है। मेले के विकास को लेकर स्थानीय निकाय का खास ध्यान नहीं है। मेले में देहाती सामानों की सबसे अधिक दुकानें सजती थी। अब वे दुकानें भी आना बंद हो गई। मेले में अब बूंदी की फुंदिया बिकने आती हैं और न ही पोमचा। न बाजूबंद की दुकानें लगती हैं और न ही दांतों में चौंप लगाने व गोदना की। पूरे श्राद्ध पक्ष में चलने वाले मेले में एक समय था जब ग्रामीण ढोलक, अलगोजों व मजीरें हाथ में लेकर घंटों तक तेजाजी गायन पर झूमा करते थे। मेला अब पूरी तरह मॉडर्न हो चुका है ।