नई दिल्ली। दिवालिया और शोधन अक्षमता संहिता से वित्त क्षेत्र में सकारात्मक सुधार होगा, खासतौर से सरकारी बैंकों के लिए, जिनका लाखों करोड़ रुपये का कर्ज फंसा हुआ है। वे इसे लागू होने के बाद कर्ज की वसूली कानूनी तरीकों से कर्जदार की संपत्तियां बेचकर कर पाएंगे। जापान की वित्त सेवा फर्म नोमुरा की रपट में यह जानकारी दी गई है।
नोमुरा की अध्ययन टिप्पणी में कहा गया है कि विश्व बैंक की दिवालिया समाधान रैंकिंग में भारत का स्थान 136वां है। इसे दिवालिया घोषित करने और वसूली करने (एक डॉलर के बदले महज 25.7 सेंट) में 4.3 साल लगेंगे। यह संहिता भारत में व्यापार में आसानी में सुधार करने में प्रमुख भूमिका निभाएगा। रपट में कहा गया है कि कुल मिलाकर यह संहिता वित्त क्षेत्र के लिए काफी सकारात्मक है, जिसका फायदा आनेवाले सालों में नजर आएगा। इससे कर्जदाता जहां कर्ज देने के लिए अधिक आत्मविश्वास से भरे होंगे, वहीं कर्ज लेनेवाला भी ज्यादा जवाबदेह होगा।
नोमुरा ने कहा कि भारत में दिवालिया को लेकर कई सारे कानून हैं, जिससे इन मामलों में देरी होती है। इस संहिता से ये सभी कानून एक साथ आ जाएंगे और एक नए संस्थागत ढाचे का निर्माण होगा। इस रपट में यह भी कहा गया है कि अगर इस सत्र में यह संहिता पारित नहीं होता है तो उसे संसद के मॉनसून सत्र में पारित हो जाना चाहिए, जो कि वर्तमान में चल रहे बजट सत्र के कई महीने बाद आएगा।
रपट में कहा गया है कि इसके पूरी तरह लागू होने में वक्त लगेगा, क्योंकि संपूर्ण संस्थागत संरचना को स्थापित करने में समय लगेगा। दिवाला और शोधन अक्षमता विधेयक, 2015 में एक दिवालिया संहिता तैयार की जाएगी, जो दिवालियापन के मामलों को तय समय में निपटाएगा। इससे किसी कंपनी को बंद करने या दिवालिया घोषित करने में लगने वाले समय में कमी आएगी और कर्जदाता भी कर्जदार की संपत्तियों को बेचकर अपने कर्ज की जल्द वसूली कर पाएंगे।
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