2014 में भारत 142वीं रैंक पर था, थोड़े सुधार के साथ 2015 में 130वें रैंक पर आ गया। ऐसे में 25 अक्टूबर को पता चलेगा कि आर्थिक सुधारों पर मोदी सरकार का जादू अबकी बार भी बरकरार है या नहीं…
नई दिल्ली. 25 अक्टूबर को वर्ल्ड बैंक की ओर से ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग’ जारी होगी। 2014 में भारत 142वीं रैंक पर था, थोड़े सुधार के साथ 2015 में 130वें रैंक पर आ गया। ऐसे में 25 अक्टूबर को पता चलेगा कि आर्थिक सुधारों पर मोदी सरकार का जादू अबकी बार भी बरकरार है या नहीं। सरकार से मिली जिम्मेदारी के बाद दो साल से डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन (डीआईपीपी) ईओडीबी रैंकिंग में सुधार पर कड़ी मेहनत कर रहा है।
70 फीसदी तक सुधरे 16 राज्य
डीआईपीपी ने राज्यों की ईओडीबी रैंकिंग भी जारी की है। इसका आधार पर्यावरण, लेबर, कंस्ट्रक्शन, लैंड, इंस्पेक्शन, टैक्स आदि मसलों पर बिजनेस ऑपरेशन को आसान बनाने के लिए उनके द्वारा किए गए कामों पर आधारित है। डीआईपीपी राज्यों से मिलने वाले इनपुट के आधार पर वैरिफिकेशन के बाद तेजी से रैंकिंग अपडेट कर रहा है। दो साल में 16 राज्यों ने सुधार के करीब 70 फीसदी सुझावों पर अमल किया है। इनमें से 10 ने तो 90 फीसदी तक सुधारों पर काम किया है।
राज्यों की ईओडीबी रैंकिंग
रैंक राज्य स्कोर (%)
1. तेलंगाना 99.09
2. आंध्र प्रदेश 98.48
3. गुजरात 97.02
4. हरियाणा 96.95
5. मध्य प्रदेश 96.73
6. झारखंड 96.26
7. राजस्थान 96.13
8. उत्तराखंड 95.25
9. छत्तीसगढ़ 94.64
10. पंजाब 90.18
अब दिल्ली-मुंबई तक सीमित नहीं सुधार
मोदी सरकार बनने के बाद डीआईपीपी ने रैंक सुधार के लिए पर वर्ल्ड बैंक की भी मदद ली है। अब तक वर्ल्ड बैंक का सर्वे सिर्फ दिल्ली और मुंबई में तक ही सीमित होने के चलते सुधार में प्राथमिकता भी इन्हीं शहरों को मिल रही थी, लेकिन अब धीरे-धीरे डीआईपीपी पूरे देश पर फोकस कर रहा है। रिफॉर्म स्टेटस चेक करने के लिए 98 प्रश्नों की एक सूची बनाई है, जिनका राज्यों को सिर्फ हां या नहीं में जवाब देना है। इनमें सिंगल विंडो सिस्टम, सेंट्रलाइज्ड हेल्पलाइन, बिजनेस एप्लीकेशन के लिए डेडलाइन जैसे मुद्दे शामिल हैं।
सिर्फ विदेशों में इवेंट और एमओयू नहीं इलाज
रैंकिंग में जिन राज्यों की स्थिति खराब रही उन्होंने डीआईपीपी के तरीकों पर सवाल भी उठाए, ठीक उसी तरह जैसे कुछ साल पहले तक डीआईपीपी वर्ल्ड बैंक के साथ करता आया है। अंततः अब राज्यों को यह महसूस होने लगा है कि बहानों के बजाए सुधारों का सहारा लेना ही उचित है। डीआईपीपी ने राज्यों को कहा कि सिर्फ विदेशों में बड़े-बड़े इवेंट्स और समिट आयोजित करने या दर्जनों एमओयू साइन करने से रैंक में सुधार नहीं होगा।