नई दिल्ली. बुरे दौर से गुजर रहे भारतीय बैंकिंग सेक्टर के लिए अच्छी खबर है। ग्लोबल रेटिंग एजेंसी मूडीज की मानें तो बैंकिंग सिस्टम सबसे खराब दौर से बाहर आ चुका है। एसेट क्वालिटी, कैपिटल लेवल और क्रेडिट कॉस्ट के मामले में स्थिति बेहतर हो रही है। 12 से 18 महीने में बैंकिंग सेक्टर का आउटलुक स्टेबल हो जाएगा। एजेंसी ने यह भी कहा कि एनपीए भी बढ़ सकता है, लेकिन अब इसमें कमी आएगी।
प्राइवेट बैंकों की स्थिति बेहतर
मूडीज के वाइस प्रेसिडेंट और सीनियर क्रेडिट ऑफिसर श्रीकांत वाडलामनी ने कहा है कि सरकारी बैंकों को आने वाले तीन वर्षों के दौरान सरकार से बड़ी मात्रा में पूंजी चाहिए, क्योंकि स्टॉक मार्केट समेत विभिन्न स्रोतों से पूंजी जुटाने की उनकी योग्यता कम हो गई है। दूसरी तरफ, प्राइवेट बैंकों को उनकी सॉलिड कैपिटलाइजेशन यानी पूंजी जुटाने और प्रॉफिट कमाने की योग्यता का लाभ मिलेगा।
क्यों आएगी बेहतरी
भारतीय बैंकों के ऑपरेटिंग एन्वायरमेंट यानी काम का परिदृश्य इसलिए बेहतर हो रहा है, क्योंकि इकोनॉमी की हालत बेहतर हो रही है। मूडीज का अनुमान अगले दो साल के लिए जीडीपी ग्रोथ रेट 7.4 फीसदी रहने का है, जबकि 2015 में यह 7.3 फीसदी थी। बेहतर मानसून, निवेश में इजाफा और एफडीआई ग्रोथ को उसने इसकी वजहें बताई हैं।
क्या हैं बड़ी समस्याएं
अधिकांश भारतीय बैंकों की सबसे बड़ी समस्या एसेट क्वालिटी, बैंकों द्वारा सरकारी स्कीमों व योजनाओं में बड़ी मात्रा में पूंजी लगाना, कैपिटल लेवल, लोन ग्रोथ में कमी आदि बड़ी समस्याएं हैं। सरकार ने बैंकों को जितने पैसे देने की घोषणा की है, वह उनकी जरूरत की तुलना में काफी कम है।
मूल्यांकन आधार
मूडीज ने पांच मानकों के आधार पर बैंकों का मूल्यांकन किया है। ये हैं- ऑपरेटिंग एन्वायरमेंट (स्टेबल), एसेट रिस्क एंड कैपिटल (स्टेबल), फंडिंग और लिक्विडिटी (स्टेबल), प्रॉफिट कमाने की योग्यता (स्टेबल) और सरकारी सपोर्ट (स्टेबल)।