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दाल का उत्पादन बढ़ाने से कम होंगी कीमतें, केंद्र और राज्य दें ध्यानः सुब्रमण्यन

Published: Jun 27, 2016 01:58:00 pm

Submitted by:

Abhishek Tiwari

अरविंद सुब्रमण्यन ने कहा कि दाल का उत्पादन बढ़ाना ही समस्या का समाधान है, उत्पादन बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को विशेष ध्यान देने की जरूरत है

Arvind Subramanian

Arvind Subramanian

पटना। वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने कहा कि विश्व में भारत सर्वाधिक दाल खपत करने वाला देश है। मांग के अनुरूप दाल का उत्पादन नहीं हो पा रहा है। इस कारण इसकी कीमत बढ़ी है। दाल का उत्पादन बढ़ाना ही समस्या का समाधान है। उत्पादन बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को विशेष ध्यान देने की जरूरत है। सुब्रमण्यन रविवार को पटना में आद्री की रजत जयंती पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत की अर्थव्यवस्था पर बोल रहे थे।

किसानों को किया जाए उत्साहित
उन्होंने कहा कि किसानों को इन्सेंटिव देकर दाल का उत्पादन को बढ़ाने के लिए उत्साहित किया जाना चाहिए। दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में केंद्र सरकार ने वृद्धि की है। कहा कि सब्जियों के दाम इनके उत्पादन से अधिक वहां के बाजार की ताकत पर निर्भर करते हैं।

सब्सिडी वितरण में सुधार की जरूरत

उन्होंने कहा कि देश में सब्सिडी वितरण में सुधार की जरूरत है। साल में 76 हजार करोड़ की सब्सिडी वितरित होती है। इसका लाभ टॉप 40 फीसदी लोग उठाते हैं। गरीब तबका इससे वंचित रहता है। 76 हजार करोड़ में सबसे अधिक 28 हजार 219 करोड़ रसोई गैस, 26 हजार 219 करोड़ बिजली, 3785 सोना, 3132 करोड़ रेल यात्रा व 1857 करोड़ किरोसिन तेल पर सब्सिडी दी जाती है। कहा कि किसानों के लिए दी जा रही सब्सिडी का लाभ उन तक नहीं पहुंचता। 80% किसान निर्धारित कीमत से डेढ़ गुना अधिक दाम पर खाद खरीदने को विवश हैं। खाद की कालाबाजारी रोकनी होगी।

ब्रेक्जिट एक मेजर शॉक

ब्रेक्जिट की चर्चा करते हुए सुब्रह्माण्यम ने कहा कि यह एक मेजर शॉक है। भले ही पटना में बैठे हुए इसके प्रभाव का अंदाजा नहीं लगे, लेकिन दूसरे विश्र्व युद्ध के बाद यह दुनिया में सबसे बड़ा आर्थिक घटनाक्रम है। यूरोप और ब्रिटेनही नहीं, इसका भारत सहित पूरी दुनिया पर असर होगा।

यूरोप में इसे लेकर शोक का माहौल है। यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने यानी ब्रेक्जिट से भारत का निर्यात प्रभावित होगा। इसके प्रभाव से बचने के लिए ठोस मैक्रो-इकोनॉमिक पहल करनी होगी। संभावित प्रभाव को नए सिरे से आंकने की भी आवश्यकता है। हां, तेल के दाम कम होंगे, जिससे भारत को लाभ होगा।

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