आमतौर पर ऐसा लगता है कि जिंदगी में सही की तुलना में गलत चीजें ज्यादा हो रही हैं। बाजार से मिले हर झटके के साथ आप दिशा बदल लेते हैं तो आप खुद के साथ टीम को भी कन्फ्यूज करेंगे। यदि आप आइडिएशन की स्टेज में हैं तो तमाम उपलब्ध संसाधनों के साथ इससे जुड़ी सारी रिसर्च को लिख लें। इसके बाद कम से कम एक से डेढ़ साल तक बाजार का विश्लेषण करें, उसके बाद ही कोई निर्णय लें। उपभोक्ताओं की प्रवृत्ति हमेशा निरंतरता वाली कंपनियों की ओर आकर्षण की होती है। ऐसे में शुरुआत से पहले पर्याप्त विचार करें और फिर अपने निर्णय पर अटल रहें।
मुश्किल चर्चाओं से दूर भागना
एक बिजनेसमैन के सामने कई बार ऐसे मुद्दे आते हैं जो उसे परेशान करते हैं। चाहे वह बिजनेस पार्टनर, क्लाइंट या टीम के साथ जुड़ा हो। ऐसे में या तो बातों मन में दबाने या भावनात्मक होकर अचानक झल्लाकर व्यक्त करना सही नहीं हैं। ऐसे में बहुत ज्यादा अनप्रोफेशनल या सॉफ्ट टॉकिंग होने के बजाए थोड़े बहुत चिंतन के बाद ऐसे विषयों पर बात करके मुद्दा सुलझा लेना ही सही है।भविष्य की कमाई का ज्यादा हिसाब लगाना
किसी भी बिजनेस प्लान की शुरुआत में उससे मिलने वाले रिटर्न पर बहुत ज्यादा फोकस करना ठीक नहीं है, क्योंकि परिस्थितियां आपके अनुमानों को एक ही दिन में बदल सकती है। वैल्यूएशन को दिमाग में रखकर बिजनेस की शुरुआत करना ठीक उसी तरह है जैसे गाड़ी को घोड़े के आगे रखकर चलाना। यूजर वॉल्यूम और रिटर्न पर फोकस करने के बजाए ऑपरेशनल एक्सीलेंसी, क्लाइंट एडवोकेसी, यूजर डिजाइन और कॉस्ट कंट्रोल जैसी चीजों पर काम करना ज्यादा फायदेमंद रहेगा।लाइफ प्लान के साथ टालमटोल रवैया
अपनी जिंदगी को लेकर हमेशा स्पष्ट रहना बेहद जरूरी है। एक आंत्रेप्रिन्योर के तौर पर यदि आप यह सोचते हैं कि खुद की सैलरी या ग्रूमिंग पर खर्च कम करके कंपनी को तेजी से वैल्यूएबल बना सकते हैं तो यह आपकी बड़ी गलती हो सकती है। यदि आप सक्षम हैं तो खुद पर पर्याप्त रूप से खर्च कीजिए। किसी इच्छा को अभी पूरा करने के बजाए यदि भविष्य में किसी ऐसे दिन के लिए प्लान कर रहे हैं जिसका कुछ पता ही नहीं है तो यह जिंदगी जीने का अच्छा तरीका नहीं है। अंततः इसका असर आपके बिजनेस पर भी पड़ेगा।