लक्षणों की पहचान और समय पर ध्यान ही उपाय
चेन्नईPublished: Oct 28, 2016 11:34:00 pm
स्ट्रोक्स की पहचान एवं समय पर रोगी का इलाज इसके खतरों से निपटने का सबसे अच्छा तरीका है। इस तरह
चेन्नई।स्ट्रोक्स की पहचान एवं समय पर रोगी का इलाज इसके खतरों से निपटने का सबसे अच्छा तरीका है। इस तरह के मामले सामने आने पर समय की कीमत अधिक होती है। समय रहते रोगी यदि हॉस्पिटल पहुंचता है तो ब्रेन को क्षतिग्रस्त होने से रोका जा सकता है। साथ ही क्षति को कम किया जा सकता है। दुनिया भर में इस रोग के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इस रोग के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए 29 अक्टूबर को विश्व स्ट्रोक दिवस मनाया जाता है। सामान्यतया लोगों में भ्रांति है कि इसका इलाज नहीं किया जा सकता है। लेकिन चिकित्सकों का मानना है कि इसका इलाज किया जा सकता है।
क्या है स्ट्रोक
स्ट्रोक ब्रेन अटैक के कारण होता है। यह ब्रेन के किसी भी हिस्से में रक्त आपूर्ति में बाधा उत्पन्न होने के कारण होता है। जब कुछ सेकेंड के लिए ब्रेन में रक्तस्राव प्रभावित होता है तो उसमें रक्त व ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ब्रेन की कोशिकाएं मर सकती हैं। स्ट्रोक की स्थिति में प्रत्येक सेकेंड 1.9 मिलियन तंत्रिका कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। यदि इस रोग की पहचान समय रहते होती है और उसका इलाज किया जाता है तो लंबे समय तक की अक्षमता से रोगी बच सकता है।
क्या है पहचान
स्ट्रोक आने के बाद रोगी के चेहरे में बदलाव होने लगता है। बाहें नहीं उठती हैं। साथ ही बोली में भी बदलाव होने लगता है। मुंह लटकने लगता है। एक हाथ नीचे लटकने लगता है। बोलने के दौरान रोगी का उच्चारण अस्पष्ट होने लगता है।
कारण
स्ट्रोक तनाव एवं अवसाद के कारण आ सकता है। इसके अलावा मधुमेह, उच्च रक्तचाप, धूम्रपान, मद्यपान, कोलेस्ट्रॉल की अधिकता से भी स्ट्रोक आ सकते हैं। मोटापा, स्थिर जीवनशैली, अनिद्रा, हृदय संबंधी रोग, पारिवारिक इतिहास, वृद्धावस्था इसके अन्य कारण है। महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में स्ट्रोक के मामले अधिक होते हैं।
क्या कहते हैं चिकित्सक
स्ट्रोक के रोगी को बचाया जा सकता है। इसके लिए लक्षणों की त्वरित पहचान एवं उचित मेडिकल केयर जरूरी है। स्ट्रोक आने के बाद पहले साढ़े चार घंटे महत्वपूर्ण हैं। इसे प्लेटिनम मिन्ट्स एवं गोल्डन आवर कहा जाता है। ऐसा करने से ब्रेन सर्जरी एवं अन्य जटिलताओं से बचा जा सकता है। इससे शरीर के अंगों व रोगी के जीवन को बचाया जा सकता है।
डॉ.सतीश कुमार, स्ट्रोक विशेषज्ञ, फोर्टिस मलर हास्पिटल