फिच का अनुमान है कि भारतीय बैंकों को मार्च 2019 तक की पूंजी जरूरत पूरी करने के लिए 90 अरब डॉलर (6,000 अरब रुपये से ज्यादा) की जरूरत होगी।
नई दिल्ली। देश के 11 सरकारी बैंकों की साख खतरे में हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इन बैंकों का क्रेडिट एडोक्यूसी रेशियो (सीएआर) बेसल 3 मानकों के हिसाब से काफी कम है। फिच ने 27 बैंकों की बैलेंस शीट की स्टडी करने के बाद रिपोर्ट को जारी की है। फिच ने कहा है कि बेसल-3 मानक के तहत बढ़ती पूंजी आवश्यकता के मददेनजर आधे भारतीय बैंकों के इस मानक से चूक जाने की आशंका है। बेसल मानक से चूकने की आशंका वाले अधिकतर बैंक सरकारी हैं जिनकी बफर पूंजी काफी कम तथा खुले बाजार के माध्यम से पूंजी जुटाने की संभावना नगण्य है।
11 बैंकों का सीएआर इस साल जून की समाप्ति पर 11.5 फीसदी से कम था जबकि बेसल-3 मानकों के अनुसार मार्च 2019 तक उनका सीएसआर 11.5 फीसदी या इससे अधिक होना चाहिए। इनमें से छह बैंकों के पास तो बेसल-3 की मार्च 2017 तक की जरूरत के अनुरूप भी सीएआर नहीं है।
फिच का अनुमान है कि भारतीय बैंकों को मार्च 2019 तक की पूंजी जरूरत पूरी करने के लिए 90 अरब डॉलर (6,000 अरब रुपये से ज्यादा) की जरूरत होगी। आईएफआरएस 9 लेखा आवश्यकता अपनाने से उनकी चुनौतियां और बढ़ सकती हैं। सरकार ने सार्वजनिक बैंकों के पुन: पूंजीकरण के लिए मार्च 2019 तक चार साल में उनमें 700 अरब रुपये के निवेश की योजना बनाई है। इसके तहत उसने बैंकों को 229 अरब रुपये देने की जुलाई में घोषणा की थी। लेकिन, यह उनकी पूंजी जरूरतों को पूरा करने तथा बैलेंसशीट को मजबूती प्रदान करने के लिए काफी नहीं होगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को बैंकों में बाजार का विश्वास फिर से बहाल करने के लिए ज्यादा पूंजी देनी होगी। नयी पूंजी के लिए सार्वजनिक बैंकों की सरकार पर निर्भरता काफी ज्यादा है। पिछले एक साल में इन बैंकों की वित्तीय हालत काफी खस्ता हुई है। इससे उनका इक्विटी मूल्यांकन भी प्रभावित हुआ है।