शीर्ष अदालत ने कहा, “जब सहारा एक ग्रुप ऑफ कंपनीज है, इसके
निदेशक मंडल भी हैं। ऎसे में अगर एक निदेशक जेल में हैं, तो कंपनियों में फैसले
क्यों नहीं हो सकते। हमें ये समझ नहीं आ रहा कि सहारा पैसा जमा न करा अपनी आजादी
क्यों दांव पर लगाए हुए है? आपके पास पैसे की कमी नहीं है और आपको अपनी प्रॉपर्टी
का पांचवां हिस्सा ही बेचना है।
आपके रवैये से लगता है कि प्रॉपर्टी पर रिसीवर
बैठाना होगा।” न्यायालय ने इसके लिए एक रिसीवर नियुक्त करने का भी सुझाव दिया,
जिसका सहारा समूह के वकील ने विरोध किया।
गौरतलब है कि सहारा प्रमुख एवं कंपनी के
दो निदेशकों की जमानत पर रिहाई के लिए न्यायालय ने पांच हजार करोड़ रूपए नकद और
इतनी ही राशि की बैंक गारंटी की शर्त रखी है, लेकिन पैसे का इंतजाम नहीं हो पाने के
कारण उन्हें जमानत पर रिहा नहीं किया जा रहा है।
भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड
(सेबी) के साथ एक विवाद में सहारा प्रमुख और कंपनी के दो निदेशक गत वर्ष चार मार्च
से तिहाड़ जेल में बंद हैं।