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आज फिर जीतने की तम्मना है , आज फिर जीतने का इरादा है 

Published: Jul 22, 2017 10:58:00 am

Submitted by:

Kuldeep

नई दिल्ली : महिला क्रिकेट टीम में इस समय न कोई रवि शास्त्री है और न ही कोई अनिल कुंबले कभी था। किसी अरुण भगत के आने की भी कोई उम्मीद नहीं। कोई समस्या, कोई विवाद नहीं। लड़ाई है भी तो बस इंग्लैण्ड से, जिससे लड़कर विश्वकप का फाइनल जीत, विश्वविजेता बनना है। इसके लिए […]

Harmanpreet kaur

Harmanpreet kaur

नई दिल्ली : महिला क्रिकेट टीम में इस समय न कोई रवि शास्त्री है और न ही कोई अनिल कुंबले कभी था। किसी अरुण भगत के आने की भी कोई उम्मीद नहीं। कोई समस्या, कोई विवाद नहीं। लड़ाई है भी तो बस इंग्लैण्ड से, जिससे लड़कर विश्वकप का फाइनल जीत, विश्वविजेता बनना है। इसके लिए आपस में कोई लड़ाई नहीं ।
क्रिकेट खेलने वाली दो टीमें हैं, एक पुरुषों की और एक महिलाओं की। पुरुष टीम कोच पाने के लिए लड़ रही है, तो महिला टीम विश्वकप जीतने के लिए । एक टीम में शास्त्री के होने से सब गड़बड़ चल रही है, तो दूसरे में शास्त्री के न होने से सब ठीक चल रहा है । जहां बहुत सारे लोग हों वहां मतभेद हो ही जाते हैं। लेकिन, भारतीय महिला क्रिकेट टीम में ऐसा कुछ नहीं है।

 आर-पार की इस खिताबी लड़ाई में विश्वकप दांव पर है, अगर हारे तो उप-विजेता का टाइटल और जीते तो विजेता का मुकुट सिर होगा। मैच में जीत होगी या हार, ये तो आने वाले वक्त के हाथ में है ।हिंदुस्तान में क्रिकेट धर्म है और खिलाड़ी इसके भगवान, जिनको बेपनाह मुहब्बत मिलती है। बस फर्क इतना है कि ये पुरुषों के हिस्से में ज़्यादा आती है। पुरुषों के लिए कप्तान के कहने पर कोच को बदल दिया जाता है, तो वहीं दूसरी ओर महिलाओं के कोच का कोई नाम भी नहीं जानता। कोच तो छोड़िये, कप्तान को कितने लोग जानते हैं? पुरुषों के लिए बाज़ार से लेकर बोर्ड तक, सब अपनी तिजोरियां खोलकर बैठे रहते हैं और जब महिलाओं की बात आती है तो सिर्फ़ आश्वासन ही मिलता है।

 महिलाओं को भी किसी गुरु शास्त्री या कुंबले की जरुरत होती होगी, अच्छी ज़िन्दगी के लिए पैसों की जरूरत होगी, उन्हें भी सम्मान की चाह होगी, तभी तो उन्होंने बेलन की जगह बल्ला थामा है। खेलों में कब तक पुरुषों का अधिकार रहेगा और कब तक ‘दंगल’ बनती रहेगी, जो हमें बताएगी की “म्हारी छोरियां छोरों से कम है के ?”

 हरमनप्रीत, मिताली राज और पूरी महिला टीम, जब तुम्हें अपने पर विश्वास है तभी तक तुम्हारा अस्तित्व है। ‘निसान’ जैसी कंपनियां बहुत आयेंगी जो तुम्हारी लोकप्रियता से अपना माल बेचकर मुनाफा कमाएंगी, तो तुम बस अपना खेल खेलना। जो सपने तुमने देखे हैं, उनको अपने जैसी किसी मिताली और हरमनप्रीत की आँखों में बोते रहना, यही तुम्हारी सफलता है और यही तुम्हारा विश्वकप।

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