उन्होंने कहा कि उसकी सुधार याचिका उन न्यायाधीशों को भी भेजी जानी चाहिए थी, जिन्होंने पुनरीक्षण याचिका खारिज की थी। न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि डेथ वारंट पर यदि रोक नहीं लगाई गई और याकूब को फांसी हो जाती है तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत याकूब को प्राप्त जीवन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
दोनों न्यायाधीशों की अलग-अलग राय को देखते हुए इस मामले को तीन सदस्यीय खंडपीठ को सुपुर्द करने का निर्णय लिया गया। मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू वृ±द पीठ का गठन करेंगे और बुधवार को इस मामले पर एक बार फिर सुनवाई होगी।
याकूब ने डेथ वारंट को यह कहते हुए चुनौती दी है कि उसके राहत के सारे विकल्प अभी खत्म नहीं हुए हैं। उसकी दया याचिका राज्यपाल के पास लंबित है, जिस पर कोई निर्णय आने से पहले उसे फांसी देना गैर-कानूनी होगा।