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राष्ट्रपति मुखर्जी ने कैदी की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिखाई दया, कैदी की फांसी को बदला उम्रकैद में, पढ़ें पूरा मामला

Mar 27, 2015 / 12:53 pm

अमनप्रीत कौर

Pranab Mukherjee

Pranab Mukherjee

नई दिल्ली। अपने विशेष अधिकार का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने असाम के एक मुजरिम की फांसी की सजा को उम्र कैद में बदल दिया है। दस साल पहले इस व्यक्ति को अपनी पत्नी और दो नाबालिग बेटों की हत्या के अपराध में फांसी की सजा सुनाई गई थी। यह बेहद अनूठा केसा है जहां राष्ट्रपति ने हत्या के अपराधी की दया याचिका को स्वीकार किया है। इससे पहले मुखर्जी 22 दया याचिकाएं खारिज कर चुके हैं।

मान बहादुर दीवान उर्फ टोटे दीवान अब 63 वर्ष का हो चुका है और फिलहाल जोहरत सेंट्रल जेल में बंद है। जब से वह जेल में है तब से उसे बहुत कम मौकों पर ही कोई मिलने आता है, क्योंकि इस अपराध के बाद उसके जीवित बेटे और बेटी ने उससे नाता तोड़ दिया था। दरअसल 29 सितंबर 2002 को दीवान का उसकी 35 वर्षीय पत्नी गौरी के साथ सेसापुखुरी नेपाली बस्ती स्थित घर में झगड़ा हो गया था।

रात को पत्नी की चुप्पी के साथ झगड़ा खत्म हो गया, लेकिन दीवान बेचैन था और सुबह 4 बजे उठकर उसने धारदार हथियार से पत्नी की हत्या कर दी। इसके बाद उसने अपने 10 वर्षीय पुत्र राजिब और आठ माह के पुत्र काजिब की भी हत्या कर दी। इसके बाद वह अपने बेटे राजू और बेटी ज्योतिमया को भी मारने के लिए ढूंढने लगा, लेकिन पिता को झगड़े के दौरान मारपीट करते देख वे दोनों रात को ही घर से भाग गए थे और एक रिश्तेदार के यहां चले गए थे।

तीनों की हत्या करने के बाद हथियार हाथ में ही लिए दीवान ने पहले प्रसाद दीवान और बिजॉय दीवान का दरवाजा खटखटाया, जबब उन्होंने दरवाजा नहीं खेला तो वह अगले घर की तरफ बढ़ा। यह घर राज कुमार दीवान का था। घर में राज कुमार की 60 वर्षीय मां बिधिमया सो रही थी। दीवान ने बिना कुछ कहे बिधिमया की गर्दन पर भी दाओ (हथियार) से दो वार किए। इसके बाद दीवान अपने घर आया और बेटे राजिब की कटी हुई गर्दन को एक प्लास्टिक बैग में डालकर मोरनहाट पुलिस स्टेशन में आत्मसमर्पण करने पहुंच गया।

इसके बाद 26 दिंसबर 2003 को सिवासागर सेशंस जज बीडी अग्रवाल ने उसे फांसी की सजा सुनाई थी। बाद में गुवाहाटी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा। इसके बाद दीवान ने 2 सितंबर 2005 को असाम के गवर्नर के पास दया याचिका लगाई जिसे 23 दिसंबर 2013 को खारिज कर दिया गया। 10 फरवरी 2014 को राष्ट्रपति के पास लगाई गई दया याचिका को राष्ट्रपति से स्वीकार कर लिया है और अब उसे फांसी नहीं होगी, लेकिन उसे ताउम्र जेल में रहना होगा।

ऎसा माना जा रहा है कि गृह मंत्रालय की इम मामले में उदारता दिखाने की सलाह को मानते हुए ही राष्ट्रपति ने यह निर्णय किया है। खबर है कि मंत्रालय ने मुखर्जी से कहा था कि दीवान गरीब परिवार से है और पत्नी, बेटों व पड़ोसिन की हत्या उसने गरीबी और बेरोजगारी से तंग आकर की थी।

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