script…तो इस तरह आईएस का भारतीय चेहरा बना मुदाब्बिर शेख | This is how Mudabbir Shaikh became face of Indian ISIS | Patrika News

…तो इस तरह आईएस का भारतीय चेहरा बना मुदाब्बिर शेख

Published: Feb 10, 2016 12:44:00 am

मुदाब्बिर को पिछले महीने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने 13 अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया था

Mudabbir Shaikh

Mudabbir Shaikh

नई दिल्ली। अरबी भाषा में ‘मुसाब’ का मतलब ‘बैल’ (बुल) होता है। भारत में आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) के प्रमुख 33 वर्षीय मुदाब्बिर शेख मुश्ताक शेख को यह नाम दिया हुआ था। उसे अबू मुसाब के नाम से भी जाना जाता था। शेख को यह नाम सीरिया में उसके हैंडलर शफी अरमार उर्फ ‘यूसुफ’ ने दिया था जो उससे चार साल छोटा है। यूसुफ की पहचान आईएस प्रमुख अबू बाकर अल बगदादी के सहयोगी रूप में भी की जाती है।

मुदाब्बिर को पिछले महीने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने 13 अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया था और इसके साथ ही भारत में आईएस ने अपनी मौजूदगी दर्ज करवा दी। 13 अक्टूबर 1982 को संवेदनशील भिंडी बाजार में पैदा हुए शेख ने 2003 में मुंबई के नागपाडा स्थित अकबर पीरभोए कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। उसने वेबसाइट बनाने की प्रोगरामिंग सीखी।

शेख ने 2010-11 में शादी की और उसकी 5 साल और 5 महीने की दो बेटियां हैं। वह मुंबरा में किराए के मकान में अपनी पत्नी उजमा और दो बेटियों के साथ रह रहा था जब एनआईए ने उसे गिरफ्तार किया। शेख के माता-पिता नालासोप्परा इलाके में उसकी छोटी बहन के साथ रहते हैं। उसने इसी इलाके से दसवीं की कक्षा पास की। नागपाडा के एम एच साबू सिद्दिक कॉलेज से 12वीं की जहां इलेक्ट्रिकल भी उसका एक विषय था। इसी समय ओसामा बिन लादेन के आतंकी संगठन अल कायदा ने अमरीका में 9/11 आतंकी हमले को अंजाम दिया जिसके बाद अमरीका ने अफगानिस्तान पर हमला बोल दिया।

पूछताद में शेख ने बताया कि 2001 के हमलों के बाद मुझे काफी बुरा लगा क्योंकि सबलोग यही समझने लगे की मुसलमान आतंकी होते हैं। इसके चलते में तनाब में चला गया। 2001 के हमलों के बाद जब मुसलमानों के बारे में ‘नकारात्मक’ लिखा जाने लगा जिससे शेख के दिमाग पर गहरा असर पड़ा। 2003 में कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने वेब प्रोग्रामिंग का कोर्स किया और फिर परिवार को सहारा देने के लिए निजी इंस्टीट्यूट में पढ़ाना शुरू कर दिया।

2005 तक उसने यह काम किया। गोरेगांव में एक कंपनी में वेब डिजाइनर की नौकरी मिलने के बाद उसने पहली वाली नौकरी छोड़ दी। हालांकि, छह महीने से ज्यादा उसने यहां काम नहीं किया।

पूछताछ में उसने आगे बताया कि 2007 तक मुंबई के विकरोली इलाके में एक ऑनलाइन कंपनी के लिए फ्लैश डेवेलपर के रूप में काम किया। इसके बाद 25 साल की उम्र में मुदाब्बिर को गोरेगांव में और अच्छी नौकरी मिल गई जहां दिसंबर 2012 में खराब प्रदर्शन के चलते निकाले जाने से पहले वहां पांच साल तक काम किया। इसके बाद उसने प्रॉपट्री और निर्माण के काम में भी हाथ आजमाया, लेकिन सफलता नहीं मिली।

आईएस में विश्वास
नौकरी छूट जाने के बाद शेख ने घर से ही काम करना शुरू कर दिया। इस दौरान वह विभिन्न कंपनियों के लिए फ्रीलांस के तौर पर काम करता रहा। फ्रीलांस करते वक्त बगदादी द्वारा आतंकी संगठन आईएस की स्थापना के बाद वह उसके बारे में पढऩा शुरू किया। आईएस के बारे में जानकारी जुटाते वक्त फेसबुक पर उसकी दोस्ती यूसुफ के साथ हो गई। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि यूसुफ ही शफी अरमर है जो रियाज भटकल के साथ इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) से जुड़ गया।

2008 में आईएम के खिलाफ हुई कार्रवाई के बाद वह अपने बड़े भाई सुल्तान के साथ पाकिस्तान भाग गया। यहां से वह नाटो सेना से लडऩे के लिए अफगानिस्तान चला गया। पिछले साल सुरक्षा बलों से लड़ते हुए सुल्तान मारा गया, लेकिन माना जाता है कि शफी सीरिया चला गया जहां से वह भारत में आईएस के लिए लड़ाकों की तलाश करने का काम कर रहा था।

सुरक्षाकर्मियों का कहना है कि मुदाब्बिर को हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी और मरीठी भाषा अच्छे से आती है और उसने करीब दे दर्जन भर लोगों का जबर्दस्ती मन परिवर्तन कर आईएस से जुडऩे के लिए मजबूर किया।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो