उसके साथ ही कौरव सेना का आत्मबल लौटा और सेना कुछ स्थिर होकर युद्ध करने लगी। भीम, अभिमन्यु, घटोत्कच, पांचों द्रौपदेयों, सत्यभूति, क्षत्रदेव, धृष्टकेतु, वसुदान और दशार्णवराज ने भगदत्त और उसके साथ लौटी सेना का सामना किया।
घटोत्कच ने अपना त्रिशूल भगदत्त को मारा, किंतु भगदत्त ने बड़ी सुविधा से उसका त्रिशूल काटकर फेंक दिया। अब प्रहार करने की बारी भगदत्त की थी। उसने एक भयंकर शक्ति घटोत्कच पर चलाई। भीम का हृदय कांप उठा।
अब घटोत्कच बच नहीं सकता। किंतु घटोत्कच ने आगे बढ़ स्वयं ही उछलकर वह शक्ति थाम ली और भगदत्त को अपमानित करने के लिए, अपने घुटने पर रखकर शक्ति के दो खंड कर दिए।
भीम का हृदय उल्लास से उछल पड़ा। इसका अर्थ था कि उसने सदा ही अपने पुत्र की क्षमता को बहुत कम आंका था अथवा यह पुत्र के प्रति मोह था, जो उसे आशंकित कर देता था।भगदत्त हताश नहीं हुआ।
वह जानता था कि उस पर न केवल कौरव सेना के गौरव की रक्षा का भार था; पांडवों से प्रतिशोध लेने का यह स्वर्णिम अवसर भी था। उसने अपने बाणों से भीम को घायल किया और घटोत्कच को तो एक प्रकार से बींध ही दिया। द्रौपदेयों को आहत किया और भीम के सारथि विशोक को इतना व्यथित किया कि वह रथ छोड़कर पीछे के खंड में जा बैठा।
भीम ने समझ लिया कि अब उससे धनुष-बाण से कुछ नहीं होगा। उसने हाथ में गदा उठाई और रथ से कूदकर भूमि पर आ गया। उसी समय दूसरी ओर से देवदत्त का नाद हुआ और अर्जुन आता हुआ दिखाई दिया। अब कौरवों के सामने प्रश्न था कि वे निकट जाकर भीम की गदा का सामना करें अथवा दूर से ही अर्जुन की बाण-वर्षा को रोकें।
भगदत्त ने भीम को छोड़कर युधिष्ठिर पर आक्रमण किया। और युधिष्ठिर की रक्षा में सारे पांडव जुट गए। राजा की रक्षा सेना के किसी भी योद्धा से अधिक महत्वपूर्ण थी। युद्ध भयंकर होता चला गया। तुम्हें एक समाचार देना है अर्जुन! और भीम ने अर्जुन को इरावान की मृत्यु का समाचार दिया।
भीम का विचार था कि अर्जुन की प्रतिक्रिया अत्यंत भयंकर होगी। संभव है कि वह कोई विकट प्रतिज्ञा कर बैठे। संभव है कि वह अपना रथ सीधा दुर्योधन के रथ से दे मारे। संभव है वह कोई भयंकर देवास्त्र प्रकट करे… पर अर्जुन ने सुना और उसकी दृष्टि अनायास ही कृष्ण की ओर उठ गई, जैसे कह रहा हो, मैंने तो पहले ही कहा था।
और फिर धीरे से बोला, क्या है क्षत्रिय धर्म भी। धन के लिए युद्ध? राज्य के लिए हत्याएं? धिक्कार है इस क्षत्रिय जीवन को। जिनके लिए राज्य की कामना की जा सकती है, वे पहले ही संसार छोड़ जाएंगे तो क्या करेंगे हम उस राज्य का।
जिसका वध हुआ है धनंजय! वह शरीर था। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है, और जिसकी मृत्यु हुई है, उसका पुनर्जन्म निश्चित है। जन्म और मृत्यु केवल शरीर के ही होते हैं, आत्मा के नहीं। कृष्ण बोले, जो शरीर राज्य के लिए युद्ध नहीं करते, मृत्यु तो उनकी भी होती है। धन्य हैं वे जो अपने धर्म का पालन करते हैं और अधर्म के नाश के लिए शरीर त्यागते हैं।
कृष्ण का स्वर संगीतमय हो गया था, आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न अग्नि जला सकती है, न जल गला सकता है, न पवन उसे जलशून्य-शुष्क कर सकता है। वे रुके, सामने देखो! आचार्य द्रोण को केन्द्र में रखकर कौरवों की सेना आ रही है। अर्जुन की निराश आंखों में जैसे एक कठोरता साकार हुई और उसने गांडीव की प्रत्यंचा खींची।
द्रोण आते ही सागर की किसी लहर के समान भीम पर टूट पड़े; और दूसरी लहर के समान भीष्म, कृपाचार्य, भगदत्त और रुशर्मा ने अर्जुन पर आक्रमण किया।
क्रमश: – नरेन्द्र कोहली