कोटार्ड्स सिंड्रोम एक ऐसी दुर्लभ है कि जिसमें व्यक्ति को महसूस होता है कि वह जिंदा नही है। इसे वॉकिंग कॉर्पस सिंड्रोम भी कहा जाता है।
कोटार्ड्स सिंड्रोम एक ऐसी दुर्लभ है कि जिसमें व्यक्ति को महसूस होता है कि वह जिंदा नही है। इसे वॉकिंग कॉर्पस सिंड्रोम भी कहा जाता है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को लगता है कि वह मर चुका है या फिर उसके शरीर का कोई अंग मौजूद ही नहीं है।
यह बेहद दुर्लभ बीमारी है, जिसमें पीड़ित अपने ही अस्तित्व में होने को अस्वीकार करने लगता है। ऐसे लोग महसूस करने लगते हैं कि उन्हें खुद को जिंदा रखने के लिए कोई काम करने (खाने, पीने, साफ-सफाई) की जरूरत नहीं है।
इस बीमारी को डायग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ मेंटल डिसऑर्डर की श्रेणी में नहीं रखा गया है। मगर, इसे बीमारियों के अंतरराष्ट्रीय वर्गीकरण में डिजीज ऑफ ह्यूमर हेल्थ में रखा गया है। फ्रेंच न्यूरोलॉजिस्ट जूल्स कोटार्ड ने बताया कि, इसका पहला मामला 1800 में देखा गया था।
उन्होंने बताया कि इस बीमारी से पीड़ित एक महिला ने स्वीकार किया था कि उसके पास दिमाग नहीं है, नर्व नहीं है, छाती नहीं है, पेट नहीं है और आंते भी नहीं हैं… सड़ रहे शरीर की सिर्फ त्वचा और हड्डियां हैं। अभी तक इस बीमारी के बारे में बहुत कम जानकारी का पता चल सका है और यह पता नहीं है कि कितने लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं।
प्रोफेसर और क्िलनिकल साइकोलॉजिस्ट पीटर किंडरमैन के अनुसार, यह सिंड्रोम बहुत दुर्लभ है और इसके बारे में अधिक जानकारी भी मुहैया नहीं है। इस बीमारी के बारे में जो भी साहित्य मौजूद है, वह कई वर्षों में व्यक्ितगत केस स्टडी पर आधारित है।