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महिला डेस्क पर नहीं हो रहा राजीनामा

locationदौसाPublished: Nov 29, 2015 10:23:00 pm

मारपीट, छेड़छाड़ व घरेलू हिंसा से पीडि़त महिलाओं को त्वरित राहत पहुंचाने के लिए जिले के प्रत्येक थानों 

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दौसा।मारपीट, छेड़छाड़ व घरेलू हिंसा से पीडि़त महिलाओं को त्वरित राहत पहुंचाने के लिए जिले के प्रत्येक थानों में संचालित की जा रही महिला डेस्क पुलिस उच्चाधिकारियों की अनदेखी के चलते वर्तमान में महज कागजों में ही संचालित हो रही है। थानों में महिला डेस्क बनाकर कर्मचारी भी तैनात कर रखे हैं, लेकिन वे महिलाओं के मामलों में समझौते कराने में नाकामयाब साबित हो रहे हैं। कार्य की अधिकता के चलते सीधे ही मामला दर्ज कर इतिश्री कर ली जाती है।


इसके बाद पीडि़ताओं को न्याय के लिए न्यायालय के चक्कर लगाने पड़ते हैं। इतना ही नहीं, अधिकतर थानों में तो थानाप्रभारियों ने डेस्क प्रभारी का कार्यभार पुरुष पुलिसकर्मियों को सौंप रखा है। ऐसे में पीडि़त महिलाएं पुरुष पुलिसकर्मियों को खुलकर अपनी पीड़ा भी बयां नहीं कर पाती है। पुरुष पुलिसकर्मी की पीडि़त महिलाओं से ज्यादा बात करने के स्थान पर सीधे मुकदमा करने की ओर ध्यान देते हैं। खास बात यह है कि जिले के थानों से महिला डेस्क के कार्य का सालाना रिकॉर्ड भी पुलिस अधीक्षक कार्यालय नहीं आता है। ऐसे में थानाप्रभारी स्वयं के स्तर पर ही यह डेस्क संचालित कर रहे हैं। इससे महिला डेस्क के माध्यम से मामलों का बिना मुकदमा दर्ज कराए ही समझौते से निस्तारण कराने का सरकार का सपना पूरा होता दिखाई नहीं दे रहा है।

यह है महिला डेस्क की स्थिति


जिले के थानों में वर्तमान में महिला डेस्क की स्थिति खराब है। जिला मुख्यालय पर महिला थाना खुलने के बाद से ही कोतवाली व सदर थाने की महिला डेस्क ने तो लगभग कार्य करना ही बंद कर दिया। यही कारण है कि दोनों थानों में गत दो वर्ष में महिला डेस्क के माध्यम से एक भी मामले का निस्तारण नहीं किया गया, हालांकि सदर थाने में संचालित महिला परामर्श केन्द्र पर महिलाओं का राजीनामे से निस्तारण जरूर कराया जा रहा है, लेकिन यह केन्द्र एनजीओ की ओर से संचालित किया जाता है। इसी प्रकार महिला थाने में संचालित महिला डेस्क भी महिलाओं को समझौते कराने में असमर्थ साबित हो रही है। इस थाने में गत तीन वर्षों में अब तक महज 40 मामलों का ही निस्तारण कराया जा सका है। इसी प्रकार रामगढ़ पचवारा, मण्डावरी, लालसोट, सिकंदरा, कोलवा, बांदीकुई, बसवा, मानपुर, महुवा, मण्डावर, सलेमपुर, मेहंदीपुर बालाजी थानों में महिला डेस्क पर महिला व पुरुष पुलिसकर्मी तैनात है, लेकिन ये लोग भी राजीनामे से मामलों का निस्तारण कराने में नाकामयाब साबित हो रहे हैं।

टूटते परिवारों को बचाना था उद्देश्य


सरकार ने थानों में बढ़ते महिला उत्पीडऩ के मामलों की संख्या को कम करने तथा टूटते परिवारों को समझौते से बचाने के लिए प्रदेश के सभी थानों में पृथक से महिला डेस्क संचालित की थी। इस डेस्क पर महिला पुलिसकर्मियों को ही तैनात किया जाना था। डेस्क पर तैनात महिला पुलिसकर्मी थाने में आने वाली प्रत्येक महिला पीडि़ता से उसकी पीड़ा सुनती और उसके बाद पहले समझौते से मामले का निस्तारण कराने का प्रयास करती है। पहली बार में मामला नहीं सुलझने पर वह पीडि़ता के परिवार वालों को भी थाने बुलाकर समझाने का प्रयास करती है। इसके बाद भी समाधान नहीं होने पर मामला दर्ज कर आगे की कार्रवाई करती है, लेकिन जिले के थानों में इन नियमों का पालन नहीं हो रहा है। ऐसे में पीडि़त महिलाओं को मजबूरन मामले दर्ज कराकर ही न्याय मांगना पड़ रहा है।

पांच वर्ष में डेढ़ हजार मुकदमे

महिला डेस्क के विफल होने के कारण जिले के थानों में घरेलू हिंसा, दहेज प्रताडऩा, छेड़छाड़, मारपीट आदि के मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि जनवरी 2011 से नवम्बर 2015 तक जिले के 18 थानों में 1 हजार 500 से अधिक मामले दर्ज हो चुके हैं।
इन मामलों में न्याय के लिए पीडि़तों को अब न्यायालय की शरण लेनी पड़ रही है।

बनाएंगे मजबूत

 महिला डेस्क को और मजबूत बनाया जाएगा। इसके लिए मुख्यालय को जिले में और महिला उप निरीक्षक लगाने, थानों पर महिलाओं के ठहरने की व्यवस्था करने के लिए बजट आदि की मांग भेजी जाएगी। स्वीकृति मिलने के बाद महिला डेस्क को मजबूत बनाया जा सकेगा।
प्रकाश कुमार शर्मा, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, दौसा
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