नई दिल्ली. रेलवे यात्री सुविधाओं को बढ़ाने और दलालों द्वारा टिकटों का फर्जीवाड़ा रोकने के लिए अब आरक्षण चार्ट में यात्रियों का पूरा नाम दर्ज करेगा और पीआरएस आरक्षण में नकदी बंद कर प्री-पेड कैश कार्ड से भुगतान लेगा। रेलवे बोर्ड के सूत्रों के अनुसार टिकट बुङ्क्षकग में भ्रष्टाचार एवं दलालों का कारोबार रोकने की कवायद में यह निर्णय किया गया कि अब आरक्षण के लिए यात्रियों से फॉर्म में पूरा नाम भरवाया जाएगा और पीआरएस में भी पूरा नाम दर्ज किया जाएगा।
इसका उद्देश्य दलालों द्वारा संक्षिप्त नामों के टिकट बुक करा मिलते जुलते नाम वाले लोगों को बेचने के धंधे पर रोक लगाना है। उदाहरण के लिए अगर किसी यात्री का नाम अशोक कुमार टंडन है तो वह एके टंडन नहीं लिख सकेगा। उसे अपना पूरा नाम लिखना होगा। इस संबंध में रेलवे बोर्ड ने क्रिस को पीआरएस सॉफ्टवेयर में आवश्यक बदलाव करने को कह दिया है।
नकदी नहीं, प्री-पेड कैश कार्ड से भुगतान
रेलवे बोर्ड में यह भी विचार चल रहा है कि आरक्षण के काम को नकदी से मुक्त कर दिया जाए। इसके लिए हर बुङ्क्षकग केन्द्र में काउंटर पर मेट्रो कार्ड की तरह एक खास प्री-पेड कैश कार्ड बेचे जाएंगे। यात्री पहले 500, एक हजार, दो हजार या पांच हजार रुपए के कार्ड खरीदेंगे और आरक्षण काउंटर पर लिपिक उनसे कार्ड लेकर टिकट की कीमत के बराबर रकम काट कर रसीद सहित टिकट दे देगा।
सूत्रों के अनुसार आरक्षण चार्ट बनने पर अगर टिकट वेट लिस्टेड ही रह गया तो रिफंड की राशि स्वत: इसी प्री-पेड कैश कार्ड में वापस हो जाएगी और एसएमएस से उसे इसकी सूचना भी आ जाएगी। यात्री मर्जी से कभी भी आवश्यकता होने पर कार्ड रेलवे के काउंटर पर लौटा कर उसमें जमा पैसे ले सकेगा। सूत्रों का यह भी कहना है कि प्री-पेड कैश कार्ड से इन सब झंझटों से मुक्ति मिलेगी। गाड़ी रद्द होने पर स्वत: ही पैसा कार्ड में चला जाएगा। यात्री इंटरनेट से भी टिकट रद्द करा पैसा कार्ड में वापस पा सकेगा।
आरक्षण काउंटर पर फुटकर पैसे लौटाना बुङ्क्षकग क्लर्क के लिए कम बड़ा सिरदर्द नहीं होता है। इससे समय बर्बाद होता है और यात्री को भी परेशानी होती है। कार्ड से भुगतान में उसे कार्ड एक मशीन में डालना होगा और उसके बाद निर्धारित रकम काट कर उसकी रसीद ङ्क्षप्रट हो जाएगी जो टिकट के साथ यात्री को दे दी जाएगी। रेलवे ने इंटरनेट से जारी होने वाले प्रतीक्षारत टिकटों के कन्फर्म नहीं होने पर ऐसा नियम बना रखा है।
चार्ट बनने के बाद पूरी तरह से वेटलिस्टेड ई-टिकट स्वत: ही निरस्त हो जाते हैं और रिफंड का पैसा स्वत: ही खाते में आ जाता है लेकिन पीआरएस से बुक टिकटों के चार्ट बनने के बाद वेट लिस्टेड रह जाने पर उन्हें रद्द करवाने के लिए यात्री को आरक्षण केन्द्र या रेलवे स्टेशन तक आना पड़ता है और रेलवे को अपने संसाधन इस काम में भी लगाने पड़ते हैं। हाल ही परिवर्तित रेलवे रिफंड नियमों के अनुसार यात्रियों को आरक्षण चार्ट बनने के साढ़े तीन घंटे के अंदर ही टिकट रद्द करवाने पर पैसा वापस मिलता है। समयसीमा के बाद पैसा जब्त हो जाता है।
ये नियम गांवों में या दूर दराज के इलाकों में रहने वाले यात्रियों के लिए समस्या तो हैं ही, रेलवे के लिए भी सिरदर्द हैं। रिफंड दावों को निपटाने के लिए पूरा अमला काम करता है। विशिष्ट दशाओं जैसे दुर्घटना या अन्य कारणों से गाडिय़ां रद्द या विलंबित होने पर अतिरिक्त इंतजाम करना पड़ता है। इससे प्रशासकीय व्यय भी बढ़ता है। वर्तमान में नई दिल्ली सहित कुछ स्टेशनों पर क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड से भुगतान लेकर टिकट जारी किए जा रहे हैं। भले ही यह अभी विचार के स्तर पर हो, पर जानकारों का कहना है कि प्री-पेड कैश कार्ड इस दिशा में एक और अहम पहल साबित होगी।
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