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प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से मिटेंगे लेड के दुष्प्रभाव

locationजयपुरPublished: Oct 27, 2015 05:05:00 pm

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बच्चों को लेड के खतरों से बचाने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान
(एम्स) में दो दिवसीय लेड एन्वायरमेंट एंड हैल्थ विषय पर कॉन्फ्रेंस में
विशेषज्ञों ने बाजार में मिलने वाले सिंथेटिक रंगों और एसिड बैटरी को शीशे
का सबसे बड़ा वाहक माना है।

पुराने समय में त्योहारों में प्राकृतिक रंगों का उपयोग से शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचता था। अब बदले जमाने में बाजार के सिंथेटिक रंगों के प्रयोग से वातावरण में हवा, पानी और खाने के साथ रासायनिक तत्व लेड (शीशे) की मात्रा हमारे शरीर में जा रही है। जो मानव स्वास्थ्य के लिए घातक है। इसलिए मानव को कृत्रिम की बजाय प्राकृतिक संसाधनों को दिनचर्या का हिस्सा बनाना होगा।

बच्चों को लेड के खतरों से बचाने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में दो दिवसीय लेड एन्वायरमेंट एंड हैल्थ विषय पर कॉन्फ्रेंस में विशेषज्ञों ने बाजार में मिलने वाले सिंथेटिक रंगों और एसिड बैटरी को शीशे का सबसे बड़ा वाहक माना है।

प्रो. वेंकेटेश ने कहा कि पुरानी बैटरी की रिसाइकलिंग से लेड की मात्रा वातावरण में जहर की तरह मिल रही है। उसे मानव शरीर से दूर रखने के लिए डॉक्टरों के साथ आम व्यक्ति को भी जागरूक होना होगा। लेड बाहर वातावरण में तो कोई नुकसान नहीं पहुंचाता, लेकिन हवा, पानी के जरिए शरीर में जाने के बाद इसके घातक परिणाम आते हैं।

एेसे होगा बचाव

पानी- इसके लिए आरओ और वॉटर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें।

हवा- ड्राइव के समय अच्छे किस्म का मास्क लगाएं।

खाना- सबिज्यों को धोकर खाएं और वेजीेटेबल प्यूरीफायर का उपयागे करें।

प्राकृतिक रंग ही उपाय

एनआरसीएलपीआई के प्रो शशिधर ने बताया कि पहले होली में प्राकृतिक रंग की जगह बाजार के सिंथेटिक और आर्टिफिशियल रंगों ने ले ली। बच्चों के खिलोनो, मैकअप, स्कूल में उत्सवों में फेंसी डे्रस आदि कई ऐसी चीजे हैं जो लेड को वातावरण में मिला रही है।

शोधकर्ता विनय ने कहा कि ट्रैफिक पुलिसकर्मियों को एक्टिवेटेड कार्बन मास्क मुंंह पर रखना चाहिए। इस मौके पर शाम को कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन किया गया। एम्स के बायोकेमेस्ट्री विभाग के हेड डॉ. प्रवीण शर्मा और डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के बायोकेमेस्ट्री विभागाध्यक्ष जयराम रावतानी ने बताया कि मंगलवार को विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञ कॉन्फ्रेंस और अन्य विशेषज्ञ लेड के कई नए दुष्प्रभाव और उनसे बचने के तरीके बताएंगे।

इन पर ध्यान देने की जरूरत

5-12 साल के उभरते बच्चों में शीशे को ऑब्जर्व करने की क्षमता बड़ों से 10 गुना अधिक होती है। वातावरण में लेड होने से बच्चों को दिए जाने वाले कैल्शियम, मैग्निशियम और अन्य खाद्य पदार्थों से शीशा बच्चों के शरीर में चला जाता है जो हड्डियों को कमजोर व आईक्यू कम कर देता है। इनसे है ज्यादा खतरासिंथेटिक पेंट, बच्चों के खिलौने, एसिड बैटरी, शीशा मिश्रित पेट्रोल, बिना लाइसेंस की अवैध तरीके से बनाई जाने वाली ट्रेडिशनल मेडिसिन।

ये होते हैं नुकसान

– नर्वस सिस्टम धीमे होना।

– लीवर को नुकसान

– पेट र्दद होना।

– अरूचि और तनाव।
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