आधा सम्वत्सर बीतने पर आश्विन मास आता है। इस मास के शुक्ल पक्ष में नवरात्र आते हैं। नवरात्र में देवी का पूजन-अर्चन सर्वाधिक श्रेष्ठ है। इन नौ दिनों में माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए व्रत-उपवास व अनेक पाठ-अनुष्ठान किए जाते हैं। इस दौरान प्रतिपदा, षष्ठी, अष्टमी और नवमी तिथि विशेष दिन माने जाते हैं।
शुभकार्य के लिए श्रेष्ठ
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि जिसे हम पहला नवरात्र कहते हैं, प्रत्येक शुभकार्य के लिए श्रेष्ठ है। इस दिन देवी के प्रथम रूप में माता शैलपुत्री का पूजन होता है। द्वितीया तिथि को माता दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा होती है। तेज व आभा चाहने वाले लोगों को इस दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करनी चाहिए।
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मनोवांछित फल
तृतीया तिथि माता चंद्रघंटा की पूजा व उपासना के लिए है। अनेक मंदिरों में तृतीया को भगवती गौरी का भी पूजन होता है। माता गौरी अत्यंत सौम्य व भक्तों को मनोवांछित फल देने वाली हैं।
शुभ-लाभ देंगे गणपति
नवरात्र का चौथा दिन माता कूष्मांडा की अर्चना से जुड़ा है। लेकिन इस दिन भगवान गणपति का विशेष पूजन करना चाहिए क्योंकि इस तिथि के स्वामी गणपति हैं। इससे व्यक्तिको शुभ-लाभ व ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होते हैं।
जननी रहेंगी स्वस्थ
पांचवे दिन स्कंदमाता के स्वरूप का पूजन होता है। इस दिन माता भवानी को वस्त्र आदि भेंट करने के साथ ही पूजन करने से जन्म देने वाली माता स्वस्थ रहती हैं।
कन्या के लिए फलदायी
छठे दिन अविवाहित कन्याओं को माता कात्यायनी का पूजन करना चाहिए। ऐसा करने से कन्या को सुयोग्य व मनोवांछित वर प्राप्त होता है। मान्यता है कि गोपियों ने इन्हीं देवी की आराधना से भगवान श्रीकृष्ण को पति के रूप में पाया था।
शत्रु होंगे परास्त
सप्तमी के दिन श्रद्धालुओं को अपने शत्रुओं को परास्त करने के लिए माता कालरात्रि का विशेष पूजन करना चाहिए। देवी के बायीं तरफ सरसों के तेल का दीपक रखना चाहिए।
चिंताओं का हरण
अष्टमी का दिन देवी को सर्वाधिक प्रिय है। इस दिन माता महागौरी को प्रसन्न करने के लिए नवार्ण मंत्र जप, दुर्गासप्तशती का पाठ और हवन करवाना फलदायी व चिंताहारी माना जाता है। कन्या पूजन करना श्रेष्ठ है।
कन्या पूजन
नवरात्र का अंतिम दिन सिद्धिदात्री देवी के विशेष पूजन के लिए श्रेष्ठ है। इस दिन पूजन करने से व्यक्तिको मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। इस दिन कन्या पूजन पुण्यकारी है। देवी माता को समर्पित डांडिया व गरबा महोत्सव भी होते हैं।
नवरात्र में माता भवानी का दिन में पूजन करने के साथ ही रात्रि में अर्चना करने का भी विधान है। मध्यरात्रि जिसे तुरीय संध्या कहा जाता है, में देवी की उपासना बहुत फलदायी है। तंत्रशास्त्र के अनुसार देवी यंत्रों को सिद्ध करने के लिए साधक रात्रि में विशेष मंत्रों का जप करते हैं। अब नौ दिनों तक भक्त देवी की उपासना में पूजन-पाठ में व्यस्त रहेंगे।