माना जाता है कि इस अवधि में भगवान विष्णु क्षीर सागर में राजा बलि के यहां पूर्ण विश्राम करते हैं। इस तिथि को श्रद्धालु उपवास करते हुए भगवान विष्णु की स्वर्ण, रजत, पीतल या ताम्र की मूर्ति को शुद्ध करके पूजन करते हैं और पूजनोपरांत चातुर्मास में विश्राम के लिए शयन कराते हैं। चातुर्मास के समापन पर अर्थात एकादशी की तिथि को विधि-विधान से श्री हरि विष्णु जी को पूजा-पाठ और भजन-कीर्तन करके जाग्रत अवस्था में लाया जाता है।
तत्पश्चात समस्त प्रकार के मांगलिक कार्य एवं आयोजन किए जा सकते हैं। चातुर्मास में पवित्रता बनाये रखने के महत्व को बताते हुए शास्त्रों में कहा गया है कि जो भक्तगण इस मास में भक्तिभाव के साथ श्री हरि विष्णु भगवान की आराधना करते हैं तथा पवित्र जीवन बिताते हैं, उन्हें धन, सम्मान, सौंदर्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा मृत्यु के उपरान्त वे पुनर्जन्म के बंधनों से मुक्त होकर बैकुंठ धाम में निवास करते हैं।