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डाइट फिटनेस

ओर्थोरेक्सिया: हमेशा हैल्दी खाने की सनक

ओर्थोरेक्सिया के मरीज आमतौर पर अपनी डाइट से डेयरी उत्पाद, नॉनवेज,  ब्रेड, पास्ता पूरी तरह हटा देते हैं

Apr 17, 2015 / 11:50 am

दिव्या सिंघल

हेल्दी ईटिंग की आदत बनाना कोई बुरी बात नहीं लेकिन जब परफेक्ट फूड खाने की आदत सनक बन जाए तो यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदायक हो सकती है। इस सनक को वैज्ञानिक स्टीव ब्रैटमैन ने “ओर्थोरेक्सिया” नाम दिया है। ओर्थोस यानी “उचित” और ओरेक्सिया का अर्थ है “भूख”। कई लोग अपना खानपान बड़ी सावधानी से तय करते हैं। स्थिति जब परफेक्शन की हद पार करने लगे तो समझ जाएं कि आदमी ओर्थोरेक्सिया से पीडित है।

लक्षण

ऎसे व्यक्ति किसी छोटे से खाद्य पदार्थ में भी कृत्रिम रंग, स्वाद, प्रिजर्वेटिव्स, पेस्टीसाइड्स, जेनेटिकली मोडीफाइड इंग्रीडिएंट, अनहैल्दी फैट आदि महसूस कर लें तो वे भूखे रह लेंगे लेकिन उसे खाएंगे नहीं। ओर्थोरेक्सिया के मरीज आमतौर पर अपनी डाइट से डेयरी उत्पाद, नॉनवेज, ग्लूटेन युक्त चीजें जैसे ब्रेड, पास्ता आदि पूरी तरह हटा देते हैं। ये हमेशा बिल्कुल शुद्ध, ऑर्गेनिक भोजन पर जोर देते हैं और खुद को न्यूट्रीशन विशेषज्ञ मानने लगते हैं। जिसका खामियाजा इन्हें अक्सर पोषक तत्वों की कमी के रूप में चुकाना पड़ता है।

दुष्प्रभाव हैं कई

इस मनोविकार से रोगी की सेहत और मनोदशा पर विपरीत असर पड़ने के साथ-साथ सामाजिक संबंध भी प्रभावित होते हैं। ओर्थोरेक्सिया के मरीज अपनी जिंदगी और दिनचर्या को पूरी तरह डाइट के आधार पर तय करने लगते हैं। ये शादी-विवाह, किसी के घर या रेस्तरां में परिजनों, रिश्तेदारों और मित्रों के साथ भोजन नहीं करते इससे लोग इन्हें घमंडी व सनकी समझते हैं। ये हर वक्त दूसरे के बनाए भोजन को सेहत के लिए “खतरनाक” मानते हैं।

इलाज
मनोचिकित्सक एवं न्यूट्रीशन विशेषज्ञ की देखरेख में मरीज को पोषण का महत्व बताना पड़ता है। उसे कच्चे फल सब्जियों के साथ पके भोजन, वसा आदि के गुणों से अवगत कराया जाता है। खानपान में संयमित लेकिन लचीला रूख अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है।

बैलेंस डाइट
हैल्दी खानपान का मतलब सिर्फ सेहतमंद खाने से नहीं बल्कि पौषक तत्वों को ध्यान में रखकर लिए जाने वाले संतुलित आहार से है जिसमें मिनरल्स, विटामिन, कार्बोहाइडे्रट, प्रोटीन, वसा आदि शामिल हो। इन तत्वों में से किसी एक की भी कमी होने पर हमें रोग फौरन घेरने लगते हैं क्योंकि इनके अभाव में रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित हो चुकी होती है।

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