यहां का दही खाएंगे तो नहीं पड़ेंगे कभी बीमार
Published: Jul 01, 2015 10:52:00 am
छत्तीसगढ़ के दही को यहां की जलवायु कुछ खास बना देती है, यहां की जलवायु में
दही में विशेष तरह के बैक्टीरिया पनपते हैं
वैसे दही तो कहीं का भी खाएं, आपकी सेहत के लिए फायदेमंद ही होता है, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि छत्तीसगढ़ के दही को यहां की जलवायु कुछ खास बना देती है। यानी यहां के जलवायु में दही में विशेष तरह के बैक्टीरिया पनपते हैं, जो उसे अन्य जगहों पर जमने वाली दही से अलग बनाते हैं। यही वजह है कि अन्य जगहों पर दही जमने में जहां 10 घंटे लगते हैं, यहां पर महज 5 से 6 घंटे ही लगते हैं। इस तथ्य का पता लगाया है, दुग्ध कॉलेज में डेयरी माइक्रोबायोलॉजी से एमटेक कर रहे सूरज ने। सूरज की मानें तो यहां का दही आंत, पेट और गले संबंधी बीमारियों के इलाज में लाभप्रद होती है।
क्यों है अन्य दही से बेहतर
अलग-अलग क्षेत्रों की जलवायु का असर वहां के वातावरण और खाद्य पदार्थो में पाए जाने वाले बैक्टीरिया की प्रकृति पर भी पड़ता है। छत्तीसगढ़ के अधिकतर भाग खासकर रायपुर और आसपास के क्षेत्र का तापमान औसत रूप से 30 डिग्री सेल्सियस बना रहता है। इस जलवायु में दही में पाए जाने वाले लैक्टोबेसिल्स बैक्टीरिया की गुणवत्ता बेहतर पाई गई। दही में पाए गए साल्मोनेला एयूरियस बैक्टीरिया गले के लिए, इकोलाई पेट और एंटेरोवायरस बैक्टीरिया आंत के लिए लाभप्रद होते हैं।
बैक्टीरिया की खासियत
दूध से दही बनने की प्रक्रिया में बैक्टीरिया के बने रहने के लिए विशेष तरह के माहौल की जरूरत होती है। अलग-अलग स्थानों की जलवायु से बै क्टीरिया की कार्यक्षमता और प्रकृति में भिन्नता आती है और यही भिन्नता दही की उत्कृष्टता को बनाती है।
ऎसे किया रिसर्च
सूरज ने अपनी रिसर्च के लिए रायपुर के आसपास के अभनपुर, आरंग, बरकोनी, परसदा, चेरिया गांवों से दही और बटर मिल्क के नमूने हासिल किए और उन पर पांच महीने तक प्रयोग किए। इन नमूनों से बैक्टीरिया का आइसोलेशन एमआरएस और एम-17 आगार पर किया और प्यूरीफिकेशन के लिए पोर प्लेट और स्ट्रीक प्लेट विधि अपनाई। क ल्चर के आइसोलेशन के बाद फिनोटिपिक और बायोकैमिकल कैरेक्टराइजेशन किया और इससे मिले परिणामों से अपने निष्कर्ष पर पहुंचे।
प्रोफेसर डॉ.मनोरमा चौहान,
प्रोजेक्ट एडवाइजर, दुग्ध महाविद्यालय