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कहीं डिप्रेशन का शिकार न बना दे अकेलापन

Published: May 05, 2015 10:33:00 am

मनोचिकित्सा विभाग में 20 से 30 फीसदी केस अकेलेपन से होने वाले डिप्रेशन के आ रहे
हैं

depression

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यदि आप अच्छे करियर और नौकरी की चाह में होमटाउन से दूर किसी शहर में आए हैं, तो आपको अकेलेपन को टाटा, बाय-बाय कहना पड़ेगा। वर्ना कहीं ऎसा न हो कि आप डिप्रेशन की गिरफ्त में आ जाएं। मनोचिकित्सकों की मानें, तो नौकरी की चाह में हजारों युवा घर से दूर अन्य शहरों में अकेले रह रहे हैं। अकेलेपन के कारण ये युवा आज नकारात्मक मनोवृत्तियों के शिकार हो रहे हैं। अपनी भावनाओं को किसी के साथ व्यक्त न कर पाने से युवाओं में डिप्रेशन स्केल बढ़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, मनोचिकित्सा विभाग में 20 से 30 फीसदी केस अकेलेपन से होने वाले डिप्रेशन के आ रहे हैं। नौकरी के साथ-साथ पढ़ाई करने वाले युवाओं में स्ट्रेस लेवल ज्यादा होता है।

हो सकते हैं कई रोग

मनोचिकित्सकों के अनुसार, यदि इस तरह से युवाओं में अकेलापन लंबे समय तक रहता है, तो वे गंभीर रोगों की चपेट में भी आ सकते हैं। युवाओं को नशे की लत लग सकती है। अनिद्रा, दिनभर परेशान रहना, निराशा, चिड़चिड़ापन, नकारात्मक सोच जैसे गंभीर रोग बढ़ जाते हैं।

कैसे होते हैं टेंशन फ्री-
1. मोबाइल पर बातें करके।
2. घंटों इंटरनेट सर्फिग।
3. एसएमएस करके।

चार सौ यूथ पर रिसर्च
जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल की कंसल्टेंट साइकोलॉजिस्ट डॉ.जयश्री की ओर से इस बारे में रिसर्च भी किया जा चुका है। इसमें कोटा और जयपुर में जॉब करने वाले चार सौ से ज्यादा युवाओं को शामिल किया गया। इन युवाओं के डिप्रेशन स्तर पर रिसर्च किया गया। तीन साल तक चले इस रिसर्च में पाया कि परिवार के साथ रहने वाले युवाओं को स्ट्रेस लेवल अकेले रहने वाले युवाओं से कम था। इस रिसर्च में पैरेंट्स के प्रोत्साहन स्केल और एकेडमिक स्ट्रेस स्केल का उपयोग किया गया। दोनों स्केल में तुलना की गई कि माता-पिता के प्रोत्साहन का एकेडमिक स्ट्रेस लेवल पर क्या प्रभाव पड़ता है। हर स्कोरिंग का अलग-अलग मतलब निकाला गया और स्कोरिंग के आधार पर रिजल्ट रिव्यू हुआ।

“एकेडमिक स्ट्रेस का प्रमुख कारण पैरेंट्स की बढ़ती अपेक्षाएं हैं। पैरेंट्स चाहते हैं कि जो काम वे खुद नहीं कर पाए, वह काम उनकी संतान करें। साथ ही स्टूडेंट्स की खुद की भी अपेक्षाएं होती हैं। उन अपेक्षाओं को पूरा करने के चक्कर में वे तनाव में आ जाते हैं।”
-डॉ. जयश्री जैन, कंसल्टेंट,
क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट, एसएमएस हॉस्पिटल

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