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भैंस के पेट से लोहे की कीलें, लोहे की पत्तियां और पत्थर निकाले

Published: May 05, 2015 09:12:00 am

Submitted by:

Anil Kumar

भैंस के पेट का बड़ा आपरेशन कर उसमें से लोहे की कीलें, लोहे की पत्तियां और पत्थर निकालकर भैंस की जान बचाई

Operation of Buffalo

Operation of Buffalo

भिवानी: शहर की वेटनरी पोलिक्लिनिक में सोमवार को एक भैंस के पेट का बड़ा आपरेशन कर उसमें से लोहे की कीलें, लोहे की पत्तियां और पत्थर निकालकर भैंस की जान बचाई है। यह भैंस उत्तम नगर निवासी राजकुमार की थी। इस भैंस का आपरेशन सर्जरी विभाग के एसवीओ डॉ. संदीप सहरावत की टीम ने किया। इस साल इस पोलिक्लिनिक में पहला सबसे बड़ा आपरेशन है।

जानकारी के अनुसार शहर के पोलिक्लिनिक में पिछले साल ही पशुओं के बड़़े आपरेशन की सुविधा शुरू की गई थी। उसी कड़ी में सोमवार को इस भैंस का यहां आपरेशन किया गया। इस बारे में भैंस मालिक ने बताया कि उसकी भैंस पिछले एक महीने से चर नहीं पा रही थी। भैंस को बार बार अफारा आ रहा था। वे भैंस के एक्स रे के लिए हिसार लेकर गए। मगर वहां एक्स रे में कुछ नहीं आया। इसके बाद वह अपनी भैंस को लेकर पोलिक्लिनिक में आया। यहां के डॉक्टरों ने भैंस के पेट में लोहे की चीजों की आशंका जाहिर की।

इसके बाद सोमवार को डॉ. संदीप सहरावत की टीम ने इस भैंस का आपरेशन किया। इस दौरान उन्होंने भैंस के पेट से लोहे की आधा दर्जन कीलें, लोहे की पांच नुकीली पत्तियों के अलावा कुछ पत्थर निकाले। इस बारे में डॉ. सहरावत ने बताया कि आजकल पशुओं में अफारे, बंधे आदि के केस सबसे ज्यादा सामने आ रहे हैं। इसका कारण यह है कि लोग पशुओं को बिना छानी हुई तूड़ी डाल रहे हैं।

इसमें थ्रैशर के नट, बोल्ट, पत्ती आदि कटकर तूड़ी में मिल जाती हैं। उनके खाने से पशुओं में यह समस्या सामने आ रही है। इसमें पशु चरना बंद कर देता है। अगर ये पैनी कीलें पशु के सांस के पर्दे को चीरकर दिल में चली जाएं तो उस पशु को बचाना बहुत मुश्किल है। उन्होंने बताया कि पशुओं के सूखे चारे में हरा चारा जरूर मिलाना चाहिए। अगर कुछ दिन हो सके तो पशुओं को पुरानी तूड़ी ही खिलाएं। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा संभव नहीं है तो तूड़ी को अच्छी तरह छानकर पशु को खिलाएं।

डॉ. सहरावत की इस टीम द्वारा सफल आपरेशन किए जाने पर पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डॉ. जयसिंह ने बधाई दी है। उन्होंने कहा कि पोलिक्लिनिक में स्पेशलिस्ट पशु चिकित्सकों के कारण ही यह संभव हो पाया है। नहीं तो यह आपरेशन हिसार विश्वविद्यालय में ही हो सकता था। डॉ. सहरावत की इस टीम में डॉ. जयपाल, डॉ. विजय सनसनवाल, राजेश वीएलडीए और बीएलईओ रमेश कुमार शामिल थे।
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