जिंदगी भर निभाते हैं परंपरा
फॉन जनजाति के लोग जुड़वां बच्चों की मौत के बाद उनका लकड़ी का पुतला बनाकर उसकी बच्चों की तरह ही देखभाल करते हैं। हालांकि यह परंपरा केवल जुड़वां बच्चों की मौत होने पर ही निभाई जाती है। इस परंपरा को माता-पिता जब तक जिंदा रहते हैं तब तक निभाते हैं।
जिंदा बच्चों की तरह करते हैं पालन-पोषण
फॉन जनजाति के लोग जब तक खुद जिंदा रहते हैं तब तक लकड़ी के इन बच्चों का पालन-पोषण जिंदा बच्चों की तरह करते हैं। इन डॉल्स को नहलाना, खाना खिलाना, कपड़े पहनाना और बिस्तर में सुलाना आदि इनके लिए रोज का काम होता है। इतना ही नहीं बल्कि इन डॉल्स को ये लोग पढ़ने के लिए स्कूल भी भेजते हैं।
फॉन जनजाति के लोग जुड़वां बच्चों की मौत के बाद उनका लकड़ी का पुतला बनाकर उसकी बच्चों की तरह ही देखभाल करते हैं। हालांकि यह परंपरा केवल जुड़वां बच्चों की मौत होने पर ही निभाई जाती है। इस परंपरा को माता-पिता जब तक जिंदा रहते हैं तब तक निभाते हैं।
जिंदा बच्चों की तरह करते हैं पालन-पोषण
फॉन जनजाति के लोग जब तक खुद जिंदा रहते हैं तब तक लकड़ी के इन बच्चों का पालन-पोषण जिंदा बच्चों की तरह करते हैं। इन डॉल्स को नहलाना, खाना खिलाना, कपड़े पहनाना और बिस्तर में सुलाना आदि इनके लिए रोज का काम होता है। इतना ही नहीं बल्कि इन डॉल्स को ये लोग पढ़ने के लिए स्कूल भी भेजते हैं।
नहीं करने पर भटकती है आत्मा
फॉन जनजाति के लोग वूदू धर्म को मानते हैं। उनकी मान्यता है कि यदि ऎसा नहीं किया जाता है तो मरे हुए जुड़वां बच्चों की आत्मा भटकती रहती है। जिसकी वजह से परिवार वालों को तकलीफ होती है। बेनिन में जुड़वां बच्चों की संख्या अधिक होती है। यहां हर 20 में से एक बच्चा जुड़वां पैदा होता है जिनमें से ज्यादातर की मौत हो जाती है। लेकिन परंपरा अनुसार बच्चों के पुतले बनाकर उनकी देखभाल करते हैं।
फॉन जनजाति के लोग वूदू धर्म को मानते हैं। उनकी मान्यता है कि यदि ऎसा नहीं किया जाता है तो मरे हुए जुड़वां बच्चों की आत्मा भटकती रहती है। जिसकी वजह से परिवार वालों को तकलीफ होती है। बेनिन में जुड़वां बच्चों की संख्या अधिक होती है। यहां हर 20 में से एक बच्चा जुड़वां पैदा होता है जिनमें से ज्यादातर की मौत हो जाती है। लेकिन परंपरा अनुसार बच्चों के पुतले बनाकर उनकी देखभाल करते हैं।