खासी ऐसी जनजाति है, जहां वर्षों से महिलाओं को गोदना गोदा जा रहा है। लोग न चाहकर भी परंपरा अपना रहे हैं।
दो सौ साल पुरानी खासी एक ऐसी जनजाति है, जहां वर्षों से महिलाओं को गोदना गोदा जा रहा है। इस जनजाति में लोग न चाहकर भी परंपरा को अपना रहे हैं। मंडला जिले के मवई विकासखंड में गोदना प्रथा सबसे ज्यादा प्रचलित है। यहां कोई आभूषण के लिए तो कोई अपने को कुरूप दिखाने के लिए गोदना करवा रहा है। वर्षों से चली आ रही इस प्रथा का आज भी अंत नहीं हो सका है।
गोदना प्रथा पर विशेष अध्ययन करने वाले डॉ. विजय चौरसिया ने बताया, मुगल शासन काल में सुंदर युवतियों को मुगल उठाकर ले जाते थे। जिसके कारण परिवारिक लोग स्त्रियों को कुरूप दिखाने के लिए उनके शरीर पर गुदना कर देते थे। मवई क्षेत्र की ग्रामीण महिलाओं ने बताया कि न चाहते हुए भी इनको गुदना गुदवाना पड़ता है, जिससे वह बदसूरत दिखें।
तरह-तरह के चलन
आदिवासी बाहुल्य जिले मंडला और डिंडौरी में गुदना को लेकर कई प्रकार के चलन हैं। जनजातियों में गोदना एक प्रतीक माना जाता है। मवई के ग्रामीण सुकता, करनी आदि ने बताया की गोदना उनके समाज में एक प्रतीक है। उनका कहना है, जब हम पैदा होते हैं तो कुछ भी लेकर नहीं आते हैं। अन्य समाज के लोग जब खत्म हो जाते हैं तो उनके साथ उनके शरीर के अलावा कुछ नहीं जाता। इसलिए वह गुदना करवाते हैं। ईश्वर के पास यह समाज गोदना लेकर पहुंचता है। इसलिए इस समाज द्वारा वर्षों से गुदना करवाया जा रहा है।
आभूषणों का भी चलन
गोदना का चलन बैगा समाज में आभूषण के रूप में भी लिया जाता है। यहां की महिलाएं अपने आपको आकर्षक दिखने के लिए गले में, माथे में आदि शरीर के तमाम हिस्सों में गुदना करवाती हैं। जिससे वह ज्यादा से ज्यादा आकर्षक लगे। ज्यादा से ज्यादा गोदना वाली महिला को ससुराल पक्ष में भी काफी भाग्यशाली माना जाता है।
8 साल की उम्र में पहला गोदना
बैगा समाज की महिलाएं बताती हैं कि बचपन से ही महिलाओं में यह रिवाज शुरू हो जाता है। शरीर के गुप्तांग को छोड़कर महिलाएं शरीर के सभी हिस्सों में गुदना करवाती हैं। पहला गोदना करीब आठ साल की उम्र में कराया जाता है। जिसे कपाड़ गुदना कहते हैं। यह प्रथा में शामिल हैं। उम्र बढ़ते-बढ़ते विवाह से पहले कई प्रकार के गोदने इनके शरीर में करवा दिए जाते हैं।
गोदते हैं 12 सुईयों से
गोदना गोदने लिए रमतिला का तेल, सरई की गोंद को मिलाकर एक पात्र में जलाते हैं। इस पात्र के उपर वह एक मिट्टी के दूसरे पात्र को ढककर उससे एक काजल बनाते हैं। इस काजल को बीजा की लकड़ी से तैयार किए गए रस में घोलकर आधा कटोरी बीजा का रस मिलाया जाता है।
इस मिश्रण को 12 सुईयों के माध्यम से शरीर में गोदा जाता है। कुछ लोग बीजा की लकड़ी की जगह भिलवा का रस भी उपयोग करते हैं। बैगा समाज के नेता ध्रुव कुमार ने बताया की कुछ लोग कुरूप दिखने के लिए गुदना गुदवाते हैं तो कुछ लोग आकर्षक दिखने के लिए गुदना करवाते हैं। वर्षों से समाज में गुदना प्रथा चली आ रही है।
-शैलेंद्र दीक्षित