ऎसा घर जहां टेप रिकॉर्डर से पंखा व पेट्रोल से चलता है साइकिल रिक्शा
Published: Jul 01, 2015 10:48:00 am
टेप रिकॉर्डर का भले ही पहले लोग गीत गाने सुनने
के लिए इस्तेमाल करते होंगे, लेकिन झब्बूलाल ने इसके इस्तेमाल से एक पंखा बना डाला
कबाड़ के इस्तेमाल से भला कोई अपना घर भी बना सकता है। यह बात भले ही सुनने में अटपटी लगे, लेकिन राजधानी के ओसीएम चौक के पास रहने वाले झब्बूलाल के घर को देखकर आपको इस बात पर यकीन हो जाएगा। दरअसल 70 वर्षीय झब्बूलाल मेहर यानी अब्दुल जफ्फार का घर इकोफ्रैंडली तरीके से बनाया गया है। इसमें रोशनी व पानी तो प्राकृतिक है ही, साथ ही पंखा भी टेप रिकॉर्डर का बनाया गया है। झब्बूलाल लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी में 17 साल तक मैकेनिक रहे हैं।
टेप रिकॉर्डर का भले ही पहले लोग गीत गाने सुनने के लिए इस्तेमाल करते होंगे, लेकिन झब्बूलाल ने इसके इस्तेमाल से एक पंखा बना डाला। रिकॉर्डर की मशीन में बैटरी के जरिए पंखा लगाया, जो एक सीमित दायरे में भारी गर्मी से राहत देने में सक्षम है।
लूना से जोड़ा रिक्शा
झब्बूलाल के पास एक रिक्शा है। इसे उन्होंने लूना से जोड़कर पेट्रोल रिक्शा बना दिया। यह भी किसी मैकनिक ने नहीं, खुद 70 साल के इन हाथों ने किया है।
रेत नहीं ईट के चूरे का मसाला
घर की दर औ दीवार को जोड़ने के लिए भी झब्बूलाल ने रेत का नहीं, बल्कि ईटों के चूरे का इस्तेमाल किया है। इसी चूरे की मदद से दीवारों का प्लास्टर भी किया गया है।
मच्छर जाली की छत, एक बूंद पानी नहीं आता
मकान की छत बनाने के लिए मच्छर जाली का उपयोग किया, जिसे लकड़ी का सहारा देते हुए फटे हुए बैनर-पोस्टर को सतह पर लगाकर उसमें सीमेंट का मिश्रण भरकर छत बनाई। सीढियों का निर्माण पत्थर के टुकड़ों से किया।
सूरज करता है रोशन
झब्बूलाल के घर को किसी आर्किटेक्ट ने नहीं, बल्कि उन्होंने स्वयं ही डिजाइन किया है। इसकी छत पर मच्छर जाली ऎसे लगाई गई है, कि इससे प्रकाश तो आता है, लेकिन बारिश का पानी नहीं।
दरवाजे को खोल न पाएंगे चोर
दरवाजा आमतौर पर लकड़ी या लोहे का होता है। लेकिन झब्बूलाल ने इसे सीमेंट का बनाया है। इससे न तो बारिश में सड़ता है और न ही आम चोरों के खोलना ही बस में है।
सालभर शुद्घ पानी के लिए खोदा कुआं
घर के अंदर ही 11 फीट गहरे इस कुंए में सालभर ताजा और शुद्घ पानी रहता है। आत्म निर्भरता और इकोफ्रैंडली की मिशाल झब्बू के घर में नींबू और अनार के पेड़ भी लगे हुए हैं।
कबाड़ से जनरेटर बनाने में जुटी बूढ़ी आंखें
झब्बूलाल की बूढ़ी आंखें अब कबाड़ से जनरेटर बनाने का सपना संजो रही हैं। वे इसके लिए नित नया सामान भी इकटा कर रहे हैं। होशंगाबाद के एक गांव में जन्मे झब्बूलाल ने बीए फर्स्ट ईयर तक पढ़ाई की है।
पेपर पढ़ते हैं बिना चश्मे के
इकोफ्रैंडली सोच और जीवन ने झब्बूलाल को आंखों की ऎसी रोशनी दी है, कि वे 70 की उम्र में भी अखबार बिना चश्मे के पढ़ सकते हैं। जबकि उनके मोतियाबिंद का ऑपरेशन भी हो चुका है।