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दुर्ग

रिश्तों में बढ़ती दूरियां सालभर मेंं ही टूट रहा सात जन्मों का बंधन

एक-दूसरे के प्रति सम्मान, विश्वास, समर्पण और घर के सदस्यों के साथ
एडजेस्टमेंट को छोड़ अब बेटियों को अपना अलग घर चाहिए, तो बेटे भी अपनी
जिम्मेदारी  निभाना नहीं चाहते।

दुर्गNov 27, 2016 / 09:56 am

Satya Narayan Shukla

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I’m going to break down in relationships growing gap year bond of seven births

भिलाई.एक-दूसरे के प्रति सम्मान, विश्वास, समर्पण और घर के सदस्यों के साथ एडजेस्टमेंट को छोड़ अब बेटियों को अपना अलग घर चाहिए, तो बेटे भी अपनी जिम्मेदारी निभाना नहीं चाहते। धैर्य, संयम को छोड़ आवेश और इगो को वजह से शादी निभाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। नैतिक मूल्यों की कमी और एकल परिवार की परवरिश ने युवाओं में ‘ मैं और मेराÓ की भावना ला दी है। शादी में अग्नि के सात फेरे लेकर सात वचन निभाने और जिंदगी भर साथ देना का वादा युवा दंपती चंद महीनों में ही भूलने लगे हैं।

602 महिलाओं को रिश्तेदारों और पति ने सताया
महिला एवं बाल विकास विभाग में अपनी शिकायत लेकर पहुंचने वाली महिलाओं में 60 फीसदी से ज्यादा मामलों में शादी के सालभर के भीतर ही एक-दूसरे के साथ नहीं रहने या प्रताडि़त होने की बात सामने आ रही है। एक्सपर्ट की मानें तो झगड़े के मूल में कुछ भी नहीं होता, लेकिन बात मनमुटाव से शुरू होकर अपमान- सम्मान से होकर सीधे मारपीट और दहेज प्रताड़ता तक पहुंच रही है। आंकड़ों पर गौर करें तो छत्तीसगढ़ में पिछले वर्ष 602 महिलाएं ऐसी हंै जो पति या उनके रिश्तेदारों द्वारा सताई हुई है। जिले के महिला एवं बाल विकास विभाग में सिर्फ 9 महीने में 217 मामले पहुंचे है।

तालमेल की कमी
कुटुंब न्यायालय में आने वाले मामलों में ज्यादातर दंपती में तालमेल की कमी और रिश्तों से जुड़े दायित्व को निभाने की कमी है। लड़का यह समझने को तैयार नहीं होता कि दूसरे घर में अलग परवरिश में पलकर आई उनकी पत्नी चंद दिनों में नए घर की परंपरा कैसे समझ पाएगी? और बहू बनकर आई लड़की ससुराल में आते ही रिश्तों से जुड़े दायित्व को निभाने की बजाए मैं और मेरे घर की रट लगाकर अलग रहने की जिद करने लगती है।

यह हो सकता है समाधान
शादी के पहले प्री मैरिज काउंसिलिंग।घर के बुजुर्ग दंपती के झगड़े में समझौता कराएं और सही का साथ दें। शादी से पहले ही बेटे और बेटी को पारिवारिक जिम्मेदारी और रिश्तों के मायने समझाएं डिग्री के साथ-साथ नैतिक मू्ल्यों के बारे में भी बताएं। घर के मामलों को कोर्ट की बजाए फैमिली काउंसिलिर के पास लेकर जाएं ताकि समझौते की गुंजाइश बनी रहे।

एकल परवरिश का असर
फैमिली काउंसलर की मानें तो जिन बच्चों की परवरिश एकल परिवार में हुई है उनके मुकाबले संयुक्त परिवार में रहने वाले बच्चों के बीच रिश्तों की समझ ज्यादा होती है। एकल परिवार में अकेले रहकर बच्चे स्वार्थी बन जाते हैं। जबकि संयुक्त परिवार में बच्चों का मानवीय, सामाजिक, पारिवारिक और नैतिक मूल्यों का विकास जल्दी होता है। कोर्ट या महिला बाल विकास में आने वाले मामलो में ऐसे मामले भी है जब बेटी एकल परिवार से निकलकर संयुक्त परिवार में जाती है और वहां के रिश्तों में बंधकर खुद को असहज पाती है जिसके कारण मनमुटाव होने लगता है।

शादी के शुरुआती 3 साल नाजुक

शादी के बाद करीब 3 वर्ष का वक्त काफी नाजुक होता है। यह ऐसा दौर है जब आपसी तालमेल सेदंपती एक-दूसरे को समझने लगते हैं या उन दोनों के बीच झगड़े होने लगते हैं, क्योंकि अगर किसी बड़े पेड़ को जड़ से उखाड़कर कहीं और लगाने की कोशिश की जाए तो उसे नई जमीन पर अपनी जड़ें जमाने में समय लगता है और लड़कियों का जीवन भी कुछ ऐसा है। लेकिन छोटे-छोटे एडजेस्टमेंट और एक-दूसरे का सम्मान कर वे अपने वैवाहिक जीवन को बेहतर कर सकते हैं। रिश्तों में मिठास बनाए रखने संवाद बनाए रखना चाहिए, क्योंकि संवादहीनता की स्थिति में ही गलतफहमी शुरू होती है।

लड़कियों में कमी
0 सहनशक्ति का कम होना, सामंजस्य की कमी
0 रिश्तों से जुड़े दायित्व को निभाने में पीछे
0 मायके और ससुराल के स्टेटस में तुलना करना
0 शिक्षित होकर भी नैतिक और फैमिली वैल्यू को ना समझ पाना
लड़कों में दिक्कत
0 धैर्य और संयम की बजाए बात-बात पर आवेश
0 अपनी जिम्मेदारी से भागना
0 नशे का आदी होना, शादी के पहले या बाद के अफेयर
0 अपनी पत्नी को परिवार में एडजेस्ट करने समय देने की बजाए गलती निकालना

बढ़ रही रिश्तों में दूरियां

फैमिली काउंसलर फैमिली कोर्ट, सरोज सिंह ने बताया कि 25 साल की काउंसलिंग में पिछले 10 वर्ष में ऐसे मामलों की भरमार हो गई है जिसमें बात सिर्फ रिश्तों को सही ढंग से नहीं निभाने की होती है और वह छोटा मामला घरेलू हिंसा या दहेज प्रताडऩा का रूप ले लेता है। समाजशास्त्री डॉ. सुचित्रा सेन ने बताया कि एकल परिवारों की परवरिश बच्चों को सामाजिक जिम्मेदारियों से दूर करती है। बच्चे कभी न कभी बड़े होंगे और उनकी शादी होगी।

खामियां गिनाने लगते
इसलिए शुरू से ही उन्हें घर पर ऐसी शिक्षा दी जाए ताकि वह अपने व्यवहार में पारिवारिक, सामाजिक और मानवीय मूल्यों को शामिल कर सकें। जिला संरक्षण अधिकारी महिला एवं बाल विकास प्रीति बाला शर्मा ने बताया कि विभाग में आने वाले घरेलू हिंसा के मामले में अधिकांश मामले शादी के चंद महीने बाद के हैं। कई मामलों में अपने स्तर पर भी समझाइश देते हैं पर वे अपनी जिम्मेदारी समझने की बजाए एक-दूसरे की खामियां गिनाने लगते हैं। उन्हें हम कोर्ट भेजते हैं ताकि वहां बेहतर काउंसलिंग हो सके और वे एक बार फिर से अपनी जिंदगी साथ-साथ शुरू कर सके।

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