script5 फैक्ट्स, जिनके कारण पॉपुलर नहीं होगा ये बजट! | 5 Facts, for which the budget will not be popular | Patrika News

5 फैक्ट्स, जिनके कारण पॉपुलर नहीं होगा ये बजट!

Published: Feb 06, 2016 05:52:00 pm

जेटली ने कहा कि मैं लोकप्रियता पाने वाले बजट को पेश नहीं करुंगा, इस बयान में कुछ सच्चाई है, आज हम आपको बताने जा रहे हैं वो 5 बातें जिनके कारण लो‍कप्रिय नहीं होगा बजट

arun jaitley

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नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली एक सप्ताह पहले ही इशारा कर चुके हैं कि आने वाला बजट लोकप्रियता से नहीं, बल्कि यह आर्थिक ग्रोथ की संभावनाओं और टैक्स में इजाफे पर आधारित होगा। जेटली ने कहा कि बजट के उनके पिटारे में क्या होगा, यह फरवरी अंत में बजट पेश होने के बाद ही पता चलेगा। जेटली ने कहा कि मैं लोकप्रियता पाने वाले बजट को पेश करने की ओर नहीं जाऊंगा। जेटली के इस बयान में कुछ सच्चाई तो है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं वो 5 बातें जिनके कारण लो‍कप्रिय नहीं होगा जेटली का बजट।

इंकम टैक्स में नई छूट की उम्मीद कम
आगामी बजट में केंद्र सरकार इंकम टैक्स में किसी तरह के छूट का प्रावधान नहीं करेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि केंद्र सरकार के सामने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को अमल करने की बड़ी वित्तीय चुनौती है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में जारी गिरावट थमने के आसार हैं जिसके चलते उसे एक बार फिर राजस्व घाटे की मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है। सरकार की कोशिश टैक्स के दायरे को अधिक से अधिक बढ़ाने की होगी और जानकारों का मानना है कि इस दिशा में आगामी बजट से एग्रीकल्चरल इंकम पर टैक्स थोपने की तैयारी की जा सकती है। लिहाजा, मौजूदा टैक्स धारकों को बजट में किसी तरह की लुभावनी घोषणाओं की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।

सख्ती से होगी कर्ज की वसूली
केन्द्र सरकार को केन्द्रीय रिजर्व बैंक लंबे समय से बैंकों की समस्या खत्म करने की अपील कर रहा है। गौरतलब है कि देश के अधिकांश बैंक कर्ज के चलते लंबे समय से बीमार चल रहे हैं। बैंकों की इसी कमजोरी के चलते जहां पिछले एक साल में रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कई बार कटौती की है, ज्यादातर बैंक इस कटौती को उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं। बैंकों की दलील है कि वह रिजर्व बैंक से मिली रियायत से अपने घाटे की भरपाई को ज्यादा तरजीह देना चाहते हैं। लिहाजा, आगामी बजट में केन्द्र सरकार इन बैंकों को उबारने के लिए उन कंपनियों पर नकेल कसने के प्रावधान ला सकती है जिससे बड़े कॉरपोरेट घरानों के पास फंसे बैंकों के पैसे को निकाला जा सके। ऐसे में सरकार की दलील होगी कि जबतक बैंकों को उनका पैसा वापस नहीं मिल जाता वह देश में कारोबारी तेजी के लिए नए व्यवसाइयों को कर्ज नहीं दे सकते।

सब्सिडी होगी खत्म
बीते दिनों पेट्रोल और डीजल पर सब्सिडी को खत्म कर दिया गया और उपभोक्ता इस सुधार से उबर चुका है। इसके चलते सरकार पर सब्सिडी का बड़ा बोझ कम भी हुआ है, लेकिन अभी भी केरोसिन और एलपीजी के लिए केन्द्र सरकार को बड़ी रकम सब्सिडी के तौर पर खर्च करनी पड़ती है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठन लंबे समय से सरकार को अपनी सब्सिडी का बोझ कम करने की सलाह दे रहे हैं। अरुण जेटली का यह बयान कि उनका बजट लोकलुभावन नहीं रहेगा इस बात का साफ संकेत है कि सरकार सब्सिडी के बोझ को कम करने के लिए बजट में कोई बड़ा कदम उठा सकती है। सरकार के पास एक विकल्प यह है कि वह सब्सिडी को पूरी तरह से खत्म कर दे और जरूरतमंद लोगों को डायरेक्ट कैश बेनिफिट ट्रांसफर कर दे। वहीं दूसरी तरफ यह प्रावधान भी किया जा सकता है कि सब्सिडी दिए जाने वाले क्षेत्रों में फायदा पाने वालों का दायरा सीमित कर दिया जाए। लिहाजा ऐसे में बजट प्रावधान किया जा सकता है कि एक निश्चित आय वर्ग को ही सरकार की सब्सिडी का फायदा दिया जाएगा और इस आय वर्ग के ऊपर के लोगों को सुविधा लेने के लिए बाजार मूल्य अदा करना होगा।

कुछ विदेशी प्रोडक्ट पर लगेगी रोक
केन्द्र सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना मेक इन इंडिया है। इसके लिए सरकार की कोशिश देश में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने की होगी। लिहाजा आगामी बजट में केन्द्र सरकार देश को कुछ क्षेत्रों में मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने की घोषणा कर सकती है। इन क्षेत्रों से घरेलू मांग पैदा करने के लिए आगामी बजट में इंपोर्ट पर लगाम लगाने की कवायद की जा सकती है। जहां कुछ उत्पादों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जा सकता है। वहीं अन्य क्षेत्रों में विदेशी उत्पादों को हतोत्साहित करने के लिए बड़ा टैक्स थोपा जा सकता है। ऐसे में सरकार की कोशिश होगी कि देश में कारोबारी इन क्षेत्रों की मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन का काम जोर-शोर से शुरू करें। हालांकि ऐसे फैसले से एक बात साफ है कि बाजार में विदेशी उत्पादों की सप्लाई तुरंत कमजोर पड़ जाएगी और वहीं घरेलू प्रोडक्ट को बाजार में आने में समय लगेगा। इसका नतीजा यह होगा कि बाजार में कुछ भी सस्ता नहीं मिलेगा। इसका सबसे बड़ा असर चीन से आयात होकर आ रहे उन प्रोडक्ट्स पर पड़ेगा जो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं।

कुछ नए तरह की ड्यूटी लगेगी देश में
इन्फ्रांस्ट्रक्चर, खासकर हाईवे और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए सरकार को काफी खर्च करना है, लिहाजा इसका फंड जुटाने के लिए कुछ जरूरत के उत्पादों पर ड्यूटी बढ़ा सकती है। इसके अलावा सोशल सेक्टर में खर्च का हवाला देकर भी सरकार ऐसे ही कदम उठा सकती है। अब इन सुविधाओं का फायदा तो सालों बाद मिलेगा, लेकिन इतना तय है कि कुछ उत्पााद और सेवाएं तुरंत महंगी हो जाएंगी।
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