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अर्थव्‍यवस्‍था

अमीर-गरीब के बीच खाई और बढ़ी, आंकड़ों में समझे पूरी कहानी

जीडीपी बढ़ी और अमीरों की संख्या कुछ हजारों से बढ़कर करोड़ में पहुंच गई

Jul 23, 2016 / 10:11 am

अमनप्रीत कौर

Diesel Cars

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नई दिल्ली। देश में आर्थिक उदारीकरण के 25 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में जश्न की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। इसकी वजह यह है कि इस दौरान देश की तस्वीर काफी हद तक बदल गई है।

मेट्रो से लेकर चमचमाती गाडि़यां और गगनचुबी इमारतों ने नए भारत को जन्म दिया है। लोगों के लाइफस्टाइल में बड़ा बदलाव आया। जीडीपी बढ़ी और अमीरों की संख्या कुछ हजारों से बढ़कर करोड़ में पहुंच गई। इससे अमीर और गरीब के बीच की खाई और चौड़ी हो गई। गरीबों और किसानों की हालत नहीं बदली है।

नई उदारीकरण नीति के चलते 2000 के बाद विकास दर तेजी से बढ़ी लेकिन रोजगार के अवसर तेजी से नहीं बढ़े। 2001 में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या 3.7 करोड़ थी, जो 2011 में बढ़कर 84.6 करोड़ हो गई। अब यह आंकड़ा एक अरब को पार कर गया है। वहीं, जॉब इस अनुपात में नहीं बढ़ी। आईटी सेक्टर में 1.25 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिला जो 1.25 अरब जनसंख्या वाले देश का महज 2.5 फीसदी है।

कृषि की हुई अनदेखी

सबसे अधिक अनदेखी कृषि की हुई। आईएमएफ के दबाव में रासायनिक उर्वरक और डीजल पर सब्सिडी बंद कर दी गई। निर्यात आधारित ग्रोथ को महत्व दिए जाने से उत्पादकों ने खाद्यान्न फसलों को छोड़कर नकदी फसलें जैसे कपास, कॉफी, गन्ना, मूंगफली, कालीमिर्च और वेनिला उगाना शुरू कर दिया। इसके चलते दैनिक प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता जो 1991 में 510 ग्राम थी, 2005 में घटकर 422 ग्राम रह गई। नई नीति के लागू होने के दस साल बीतने पर कृषि आधारित परिवारों की संख्या 26 फीसदी से बढ़कर 48.6 फीसदी हो गई। वहीं कर्ज का अनुपात 1.6 से बढ़कर 2.4 फीसदी हो गया।

क्या हुआ बदलाव

सरकार ने नई उदारीकरण नीति के तहत इंपोर्ट कोटा खत्म कर दिया, 100त्न टैरिफ को घटाकर 25-36त्न कर दिया, रक्षा और राष्ट्रीय उद्यमों को छोड़कर सभी के लिए इंडस्ट्रियल लाइसेंस खत्म कर दिया गया।

मुख्य बिंदु –

– जीडीपी ग्रोथ 2.3%
– जनसंख्या वृद्धि 54.7%
– एफडीआई ग्रोथ 17,123%
– मोबाइल यूजर्स ग्रोथ 2100%
– 1991 में आबादी 83.9 करोड़
– 2016 में आबादी 129.8 करोड़

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