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सरकार की टैक्स बेस बढ़ाने की कोशिश, इन्फ्रा पर खर्च से बढ़ेगी जॉब

Published: Dec 28, 2016 08:17:00 pm

जीडीपी के अनुपात में टैक्स रेवेन्यू में अपेक्षित इजाफा नहीं होने से सरकार के माथे पर चिंता की लकीर साफ है। यह ब्रिक्स देशों में भी सबसे कम है।

Tax base

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नई दिल्ली. जीडीपी के अनुपात में टैक्स रेवेन्यू में अपेक्षित इजाफा नहीं होने से सरकार के माथे पर चिंता की लकीर साफ है। यह ब्रिक्स देशों में भी सबसे कम है। देश की पूरी आबादी का महज 4-5 फीसदी हिस्सा ही कर देता है, जो विकसित देशों की तुलना में काफी कम है। बमुश्किल 3 करोड़ लोग इनकम टैक्स रिटर्न दायर करते हैं और इनमें लगभग 1.25 करोड़ ही टैक्स देते हैं। जबकि अमरीका में 54.7 फीसदी लोग इनकम टैक्स चुकाते हैं। ऐसे में सरकार कर दायरा बढ़ाने के लिए जीतोड़ कोशिश कर रही है। उसका लक्ष्य फिलहाल 5 फीसदी आबादी को इनकम टैक्स के दायरे में लाना है। हालांकि इनकम टैक्स एक्सपर्ट बलवंत जैन के अनुसार जिस तरह आगामी बजट में इनकम टैक्स छूट की सीमा को 2.5 लाख से 3 लाख रुपए करने की चर्चा है, उससे 0.5 फीसदी लोग इनकम टैक्स के दायरे से बाहर हो जाएंगे। हालांकि टैक्स आधार को बढ़ाए बगैर कल्याणकारी योजनाओं के साथ ही इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च के लिए जरूरी राजस्व संभव नहीं होगा। इससे रोजगार के मोर्चे पर सरकार को और अधिक दबाव का सामना करना पड़ सकता है।

क्या कर रही है सरकार

टैक्स आधार बढ़ाने के लिए मोदी सरकार नोटबंदी, जीएसटी क्रियान्वयन, टैक्स समझौते, बेनामी प्रॉपर्टी एक्ट जैसे तमाम उपाय कर रही है। इनके अलावा, डिजिटल ट्रांजेक्शन, जनधन, आधार, मोबाइल और विभिन्न उद्योगों से प्राप्त आंकड़ों को सामने रखकर भी सरकार अपने डाटा बेस को बढ़ा रही है। इन उपायों से उसकी योजना अधिक से अधिक लोगों और बिजनेस यूनिट्स को विभिन्न करों के दायरे में लाना है। सरकार को उम्मीद है कि इन उपायों से राजस्व विभाग के पास बड़ी संख्या में लोगों का डाटा बेस तैयार होगा और धीरे-धीरे बाकी लोग भी टैक्स के दायरे में आ जाएंगे।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

जेएनयू के प्रोफेसर और अर्थशास्त्री डॉ संतोष मेहरोत्रा ने बताया कि सरकार विभिन्न उपायों से आंकड़े तो जुटा लेगी, लेकिन जब तक इन आंकड़ों का उपयोग और जांच अच्छी तरह से नहीं की जाएगी, तब तक इसके अपेक्षित फायदे नहीं होंगे। टैक्स डिपार्टमेंट के एक अधिकारी ने बताया कि विभाग में सभी स्तर पर कर्मियों की भारी कमी है। इसके अलावा, जो लोग काम कर रहे हैं, उनके पास भी जरूरी कौशल और ट्रेनिंग का अभाव है। उन्होंने बताया कि अगर आपके पास आंकड़े भी हों तो भी कर चोरी करने वालों की पहचान करना आसान नहीं है। मेहरोत्रा के अनुसार, टैक्स चोरों को पकडऩे की प्रक्रिया कई मामलों में दमनकारी भी हो जाती है। इससे लोग बचाव के अन्य रास्ते खोजने लगते हैं। इस तरह टैक्स विभाग का काम और जटिल हो जाता है।

डाटा एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म जरूरी

मेहरोत्रा ने कहा कि तमाम बाधाओं के बावजूद एक बड़ा डाटा और एडवांस्ड एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म बनाना जरूरी है। इससे सर्कुलर ट्रेडिंग, हवाला डील, इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) ओवर क्लेम, सेल्स अंडर डिक्लरेशन, ट्रांसफर प्राइसिंग आदि के जरिए कर चोरी को काफी हद तक संभव हो सकता है। उनके अनुसार, टैक्स सिस्टम को अधिक से अधिक पारदर्शी बनाया जाना चाहिए, ताकि टैक्स पेयर्स में खुद विश्वास का संचार हो। इसके अलावा उन्हें उचित रिटर्न दायर करने के लिए प्रेरित भी किया जाना चाहिए। उन्हें बताया जाना चाहिए टैक्स बेस बढऩे से आखिरकार देश, समाज और खुद उन्हें इसका लाभ मिलेगा। अमरीका और यूरोप के कई देशों में टैक्स बेस बढऩे के कारण ही लोगों को सामाजिक सुरक्षा मिल पा रही है, जो भारत में अभी संभव नहीं है।

क्या है टैक्स की स्थिति

वित्त वर्ष 2016-17 की पहली छमाही यानी अप्रैल-सितंबर के दौरान सरकारी उपायों से अप्रत्यक्ष कर संग्रह में 26 फीसदी की आकर्षक ग्रोथ दर्ज की गई। हालांकि इस दौरान प्रत्यक्ष कर में महज 9 फीसदी का इजाफा संभव हुआ। इस दौरान अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष दोनों कर संग्रह 7.35 लाख करोड़ रुपए रहा, जो इस साल के 16.26 लाख करोड़ का लगभग आधा है। सरकार का लक्ष्य पूरे साल के दौरान 12.64 फीसदी ग्रोथ के साथ 8.47 लाख करोड़ प्रत्यक्ष कर और 10.8 फीसदी ग्रोथ के साथ 7.79 लाख करोड़ रुपए अप्रत्यक्ष कर संग्रह है।

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