गाइड लाइंस के लिए राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग ने एक एक्सपर्ट ग्रुप बनाया था, जिसमें कानून मंत्रालय, बाल कल्याण समिति, एचआरडी मिनिस्ट्री के लोग शामिल थे।
अगर किसी छात्र के माता-पिता के बीच अगर कस्टडी विवाद चल रहा हो तो स्कूल किसकी सुनें इसे लेकर अक्सर असमंजस की स्थिति आ जाती है। इस तरह के कई विवाद सामने आने के बाद राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग ने अब एक दिशा-निर्देश तैयार कर सभी राज्यों को भेज रहा है। विद्यालयी शिक्षा सचिव, स्कूल इस दिशा-निर्देश का पालन कराएंगे व स्कूलों को जानकारी देंगे।
गाइडलाइन में कहा गया है कि ऐसे केस हो सकते हैं, जहां पति- पत्नी के बीच तलाक या कस्टडी या दोनों से संबंधित केसेज चल रहे हों। ऐसे में अगर माता-पिता में से कोई एक स्कूल से बच्चे के ट्रांसफर सर्टिफिकेट की मांग करता है तो स्कूल किसी एक को यह नहीं देगा। अभिभावक आपसी सहमति से ऐसा मामला सुलझाने को कहेगा या कोर्ट जाने की सलाह देगा, क्योंकि अदालत ही तय कर सकता है कि बच्चा किसकी कस्टडी में रहेगा। यहां तक कि इस तरह के मामलों में बाल कल्याण समिति (सीडब्लूसी) के पास भी किसी तरह का आदेश देने का अधिकार नहीं है। अगर अभिभावक का मामला अदालत में नहीं भी है और माता-पिता अलग-अलग रह रहे हैं, तब भी यही नियम लागू होगा।
अगर किसी एक पैरेंट पर चाइल्ड अब्यूज की शिकायत हो और वह बच्चे का ट्रांसफर सर्टिफिकेट चाहता है तो स्कूल मामले को सीडब्लूसी को भी रेफर कर सकते हैं, ताकि वह जेजे एक्ट के तहत चाइल्ड अब्यूज की शिकायत देखें और निर्णय करें कि करना क्या है।