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Movie Review: अपने सपनों को पूरा करने की धुन है धोनी: द अंटोल्ड स्टोरी 

Published: Sep 30, 2016 04:05:00 pm

Submitted by:

dilip chaturvedi

स्टारकास्ट : सुशांत सिंह राजपूत,श्रेयस तलपड़े, कायरा अडवाणी, दिशा पटानी, अनुपम खेर, भूमिका चावला, रेटिंग : 3/5

dhoni

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बैनर : फॉक्स स्टर स्टूडियो, इंस्पायर्ड एंटरटेनमेंट
निर्माता : अरुण पांडेय
निर्देशक : नीरज पांडेय
जोनर : ड्रामा, बायोपिक
संगीतकार : अमाल मलिक, रोचक कोहली

रोहित के. तिवारी/ मुंबई ब्यूरो। बॉलीवुड को अपने स्टाइल की फिल्में परोसते आए निर्देशक नीरज पांडेय अपने चाहने वालों के लिए इस बार इंडियन क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की जिंदगी पर आधारित फिल्म लेकर आए हैं। उन्होंने फिल्म के जरिए धोनी की लाइफ के हर पहलुओं को छूने की पूरी कोशिश की है। धोनी की बायोपिक असरदार सिनेमा की श्रेणी में रखी जा सकती है, क्योंकि धोनी का जीवन युवाओं को कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित करता है।

कहानी… 
190 की कहानी बिहार के राची से शुरू होती है, जहां 1981 में पान सिंह धोनी (अनुपम खेर) के यहां महेंद्र सिंह धोनी (सुशांत सिंह राजपूत) का जन्म होता है। फिर कुछ साल बाद फुटबॉल के मैदान पर गोलकीपर माही पर स्कूल के कोच (राजेश शर्मा) की नजर पड़ती है, तो वे माही को स्कूल टीम से क्रिकेट की विकेट कीपिंग के लिए तैयार कर लेते हैं। फिर माही जैसे-तैसे अपनी मां को मना लेता है और पान सिंह की दिली इच्छा के बगैर वह मैच पर पूरा कॉन्सेंट्रेटे करता है। टीम में छठे नंबर पर उतरने वाला बैट्समैन धोनी अब ओपनिंग बल्लेबाज बन जाता है। अब परीक्षा को लेकर पान सिंह टेंशन में होते हैं, लेकिन धोनी की मां और उसकी बहन गायत्री (भूमिका चावला) सब मिलकर पान सिंह को मना लेते हैं। अब धोनी अपने दोस्तों के सहयोग से तीन घंटे का पेपर ढाई घंटे में करके एक नामचीन क्रिकेट कॉलेज में शामिल होने के लिए जुट जाता है। अब यहां वो बिहार की तरफ से पंजाब टीम पर धमाकेदार प्रदर्शन तो करता है, पर उसका सलेक्शन इंडिया की तरफ से अंडर 19 में नहीं होता है। बावजूद इसके धोनी अपने दोस्तों को पार्टी देता है और खुद और ज्यादा मेहनत करने को ठानता है। फिर अचानक पता चलता है कि उसका सलेक्शन दिलीप ट्रॉफी में हो गया है, पर उसका लेटर जमशेदपुर में लटका होता है और कोलकाता में उसे रिपोर्टिंग करनी होती है। वह अपने दोस्तों की मदद से बिहार से कोलकता वाया रोड जाता तो है, पर वहां भी उसकी फ्लाइट मिस हो जाती है। अब उसे रेलवे स्पोर्ट कोटे से टिकट कलेक्टर की जॉब मिल जाती है। अब रेलवे के बड़े अधिकारी एके गांगुली की बदौलत उसे खडग़पुर में जॉब मिल जाती है। जॉब मिलते ही अपने बेहतर खेल के प्रदर्शन के कारण वह गांगुली का चाहेता बन जाता है और नौकरी पर कम, जबकि क्रिकेट पर ज्यादा ध्यान देता है। इसलिए वह नौकरी में अनुपस्थित रहने लगा, जिसकी वजह से उसे रेलवे की तरफ से नोटिस मिलता है। अब वह नौकरी से परेशान होकर वहां से भाग जाता है और अपने घर पहुंचता है। जब उसके पापा को पता चलता है, तो वे भी नाराज होते हैं। इसी के साथ कहानी में ट्विस्ट आता है और फिल्म आगे बढ़ती है। 

अभिनय…
स्टार क्रिकेटर एमएस धोनी के फैन रहे सुशांत सिंह राजपूत ने उनकी रियल लाइफ को अपने अभिनय के जरिए बड़े पर्दे पर उकेरने की पूरी कोशिश की है, जिसमें वे काफी हद तक सफल भी दिखाई दिए। युवराज के रोल में हैरी कहीं-कहीं पर थोड़ा मात खाते दिखाए दिए, लेकिन युवराज की स्टाइल को उन्होंने बखूबी कॉपी करने का प्रयास किया। रोहित के रोल को श्रेयस ने जिया है, जिसमें कई मायनों में सफल भी रहे। साथ ही अनुपम खेर व राजेश शर्मा ने भी अपने-अपने किरदारों में पूरी जान फूंकने का अच्छा प्रयास किया है। इसके अलावा कायरा आडवाणी, दिशा पटानी और भूमिका चावला अपने-अपने रोल में शत-प्रतिशत देती नजर आईं। 
 
निर्देशन… 
निर्देशक नीरज पांडेय हमेशा ही अपने अंदाज की फिल्में ही ऑडियंस के सामने लेते आए हैं। उन्होंने इस बार देश के स्टार बल्लेबाज महेंद्र सिंह धोनी की जिंदगी पर आधारित फिल्म के निर्देशन का जिम्मा उठाया है, जिसमें वे सफल भी रहे। साथ ही फिल्म की ओर लोगों का ध्यान केंद्रित करने के लिए उन्होंने इसमें ड्रामे का जमकर तड़का लगाने की भी पूरी कोशिश की है। उन्होंने इस बायोपिक फिल्म के लिए होमवर्क तो काफी किया, पर वे पूरी तरह से सफल होते दिखाई नहीं दिए। वाकई में उन्होंने एक क्रिकेटर की जिंदगी को दिखाने के लिए पूरा प्रयास किया, जिसकी वजह से वे ऑडियंस की वाहवाही बटोरने में सफल रहे। लंबी फिल्म होने के कारण इसका फस्र्ट हाफ तो बहुत धीरे-धीरे चलता है, पर स्क्रिप्ट पर गजब पकड़ के कारण ऑडियंस खुद को फिल्म से बांधे रखते हैं। बहरहाल, ‘मैचवा के बाद पता चल ही न जाएगा…’, ‘नौकरी के लिए आउट थोड़े ही न होंगे…’ और ‘फोन के ऊपर ही बैठी थीं क्या…’ जैसे डायलॉग्स काबिले तारीफ हैं।

गीत-संगीत…
किसी भी फिल्म की सफलता में उसका गीत-संगीत काफी मायने रखता है, लेकिन धोनी की बायोपिक में यह बेअसर नजर आता है। कहानी के मुताबिक, संगीत पक्ष फीका नजर आता है।

क्यों देखें …
महेंद्र सिंह धोनी के चहेते और उनकी असल जिंदगी को देखने की तमन्ना रखने वाले सिनेमाघरों की ओर बड़े आराम से रुख कर सकते हैं। फुल एंटरटेनमेंट की भी उम्मीद कर सकते हैं आप…। 

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