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तुर्की में तख्तापलट की कोशिश की ये हैं 5 बड़ी वजहें

Published: Jul 16, 2016 12:14:00 pm

तुर्की में सेना ने तख्तापलट की नाकाम कोशिश की, 1960 से लेकर अब तक तुर्की में कई बार तख्तापलट हो चुका है

turkey pm

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नई दिल्ली। तुर्की में सेना ने तख्तापलट की नाकाम कोशिश की। पुलिस ने रिसेप तईप एर्दोगन की सरकार को गिरने से बचा लिया लेकिन तुर्की में ये स्थिति अचानक नहीं बनी। 1960 से लेकर अब तक तुर्की में कई बार तख्तापलट हो चुका है। 2002 में एर्दोगन जब देश के प्रधानमंत्री थे तब भी सेना के कई अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया था। इन अधिकारियों पर गुप्त संस्था एर्जेनकॉन के लिए काम करने का आरोप था,जो एर्दोगन की सरकार को हटाना चाह रहे थे।

1.रिसेप तईप एर्दोगन की पार्टी(एब्रिविएशन ऑफ टर्किश इनिशियल्स ऑफ जस्टिस एंड डवलपमेंट पार्टी)2000 में सत्ता में आई थी। एक साल पहले ही ये पार्टी बनाई गई थी। तभी एर्दोगन पर आरोप लगे कि वे राष्ट्रपति के ईद गिर्द सारी शक्तियां केन्द्रीय करना चाहते हैं। उन्होंने कथित तौर पर लगातार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ काम किया।

2.रिसेप तईप एर्दोगन के सत्ता में आने के बाद से ही सरकार का रूख इस्लाम की तरफ झुका रहा। देश में धर्मनिरपेक्ष कानूनों की जगह इस्लामिक नियमों को लागू करने के लिए कई कानून भी पारित किए गए।

3.तुर्की और अमरीकी सेना के करीबी रिश्ते हैं लेकिन पश्चिमी नेताओं के साथ तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के रिश्ते खराब हैं। एर्दोगन और अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच भी कई बार तनाव की स्थिति पैदा हो चुकी है।

4.साल 2000 में सत्ता में आते ही राष्ट्रपति एर्दोगन ने कई सैन्य अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई की और कई पर अदालतों में केस भी चला। इसके बाद से ही सेना और एर्दोगन के रिश्ते खराब है।

5.एर्दोगन सत्ता में आने के बाद से ही संविधान के दोबारा निर्माण के पक्षधर हैं। एर्दोगन संविधान में बदलाव कर राष्ट्रपति पद को अमरीकी रंग में ढालना चाहते थे लेकिन इस चाहत ने उनके कई समर्थकों को उनसे दूर कर दिया।

27 मई 1960
यह तख्तापलट तब हुआ था जब सत्ताधारी दल ने अतातुर्क की ओर से बनाए गए सख्त कानूनों से इतर धार्मिक गतिविधियों की खुली इजाजत दी,जिसमें सैकड़ों की तादाद में मस्जिदों को खोला गया और अरबी में प्रार्थना की इजाजत दी गई। जब सेना ने सत्ता की बागडोर संभाली तब इसके प्रमुख कमाल गुर्शेल ने कहा कि इसका मकसद देश में लोकतंत्र और उसके मूल्यों को मजबूती से स्थापित करना है। साथ ही सेना का मकसद लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को सत्ता सौंपना है। गुर्शेल ने 1966 तक राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की शक्तियों का प्रयोग किया।

12 मार्च 1971
तुर्की के राजनीतिक हलकों में तनाव के चलते और आर्थिक स्थिति पर मंडरा रहे खतरों के बादल के बीच मिलिट्री जनरल ममदुल तगमाक ने सीधे सत्ता अपने हाथ में भले ही न ली लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री को सीधे निर्देश देना शुरू कर दिया। इसे मेमोरेंडम ऑफ कू करार दिया गया। प्रधानमंत्री सुलेमाम दिमेरल को सेना ने अल्टीमेटम दे दिया था। सेना ने कहा था कि लोकतांत्रिक मूल्यों के तहत मजबूत और विश्वसनीय सरकार काम करे ताकि वर्तमान अराजकता की स्थिति से बाहर आया जा सके। इस मैमोरेंडम के बाद दिमेरल को इस्तीफा देना पड़ा। इस बार सेना ने सीधे सत्ता हाथ में नहीं ली थी। 1973 तक बदलती सरकारों के कामकाज पर नजर बनाए रखी थी।

12 सितंबर 1980
तुर्की मेें 1973 के बाद भी सामाजिक और राजनीतिक स्थिति सामान्य नहीं हुई। एक बार फिर सेना ने सारा काम अपने हाथ में ले लिया। 1979 के अंत तक कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने सैन्य तख्तापलट का फैसला लिया। यह पैसला मार्च में लागू होना था लेकिन कुछ समय के लिए टाल दिया गया। बाद में 12 सितंबर को इस संबंध में सेना ने राष्ट्रीय चैनल में एक घोषमा कर देश में मॉर्शल लॉ लगा दिया। इस समय सेना ने संविधान को समाप्त कर दिया और नया लागू किया जिसे 1982 में रेफरेंडम के लिए लोगों के बीच भेजा। इस संविधान को 92 फीसदी लोगों ने समर्थन दिया। नए संविधान के लागू होने के बाद चुनाव हुआ और सैन्य तख्तापलट करने वाले जनरल केनन एवरेन सत्ता में बरकरार रहे। अगला सात सालों तक केनन पद पर रहे।

27 फरवरी 1997

इस साल भी सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली। इसे पोस्टमॉर्टम कू के नाम से जाना गया। इस समय सुलेमाम दिमिरल खुद राष्ट्रपति थे जिन्हें 1971 के तख्तापलट के दौरान हटाया गया था। इस समय सेना ने तर्क दिया कि देश में राजनीतिक स्तर पर इस्लाम के ज्यादा प्रयोग होने लगे हैं। सेना के जनरल इस्माइल हक्कर करादेल ने सरकार के प्रमुख नेकमेट्टिन एर्बाकन को कुछ निर्देश दिए। इसमें कई धार्मिक स्कूलों को बंद करने,यूनिवर्सिटी में सिर पर टोपी पहनने पर रोक लगाने के लिए कहा। इसके बाद सेना के दबाव में प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। एक अंतरिम सरकार बनाई और सेना ने 1998 में वेलफेयर पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया। इसी साल एर्दोगन जो उस समय इस्तांबुल के मेयर थे,को जेल भेज दिया गया। साथ ही पांच साल के लिए उनके राजनीति करने पर भी रोक लगा दी गई। यह सजा उन्हें जनता के बीच में एक इस्लामिक कविता पढऩे के लिए दी गई थी। 1999 में फिर चुनाव हुए। 2014 में एर्दोगन देश के राष्ट्रपति चुने गए।

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