scriptकैलाश, मलाला को मिला शांति का नोबेल पुरस्कार  | Satyarthi, Malala receive Nobel Peace Prize jointly | Patrika News
टेक्नोलॉजी

कैलाश, मलाला को मिला शांति का नोबेल पुरस्कार 

कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला  को संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

Dec 24, 2014 / 05:18 pm

भूप सिंह

ओस्लो। दुनिया भर में बाल मजदूरी के खिलाफ अलख जगाने वाले “बचपन बचाओ आंदोलन” के प्रणेता भारत के कैलाश सत्यार्थी और देश की विपरीत परिस्थितियों में भी अदम्य साहस के साथ मुखर रूप से लड़कियों की शिक्षा की पैरोकार रही पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को बुधवार को संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।



नोबेल पुरस्कार के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी भारतीय और पाकिस्तानी को संयुक्त रूप से इस पुरस्कार से नवाजा गया है। नॉर्वे की राजधानी ओस्लो के सिटी हॉल में एक बड़े समारोह में सबसे पहले सत्यार्थी को पुरस्कार के रूप में एक स्वर्ण पदक और एक डिप्लोमा दिया गया। उनके बाद मलाला को पुरस्कार प्रदान किया गया।



पुरस्कार लेने के बाद दोनों विजेताओं ने एक बड़ी मुस्कान के साथ अपना पुरस्कार लोगाें को दिखाया। सफेद कुर्ता पहने सत्यार्थी और लाल शॉल से लिपटी मलाला के लिए हॉल में मौजूद लोगों ने खडे होकर उनके लिए तालियां बजाई।



पुरस्कार दिए जाने से पहले पाकिस्तानी गायक राहत फतह अली खान ने अपनी दमदार आवाज में कव्वाली गाई और उसके बाद पूरा सिटी हॉल प्रसिद्ध भारतीय सरोद वादक अमजद अली खान के वादन से झूम उठा। नॉर्वे नोबेल समिति के अध्यक्ष थार्बजॉन जैगलैंड़ ने कहा कि सत्यार्थी ने बाल श्रम को खत्म करने के लिए काफी प्रयास किए।



उन्होंने कहा कि मलाला ने अपनी बहादुरी से दुनिया को रूबरू कराया। तालिबान के खिलाफ आवाज उठाने वाली मलाला ने दिखाया कि यदि बहादुरी से कुछ करने की सोची जाए तो उसमे जरूर सफलता मिलती है। मलाला स्कूली बच्चों के लिए प्रेरणा बनी हैं। सत्यार्थी ने बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ाई की, जबकि मलाला ने बालिकाओं की शिक्षा के हक में आवाज उठाई।



पाकिस्तान की 17 वर्षीय मलाला नोबेल शांति पुरस्कार पानी वाली सबसे कम उम्र की शख्सियत हैं। नोबेल शांति पुरस्कार समिति ने यहां जारी विज्ञप्ति में कहा, शां तिपूर्ण वैश्विक विकास के लिए यह जरूरी है कि बच्चों और युवाओं के अधिकारों का सम्मान किया जाए। युद्धरत और संघर्षरत क्षेत्र में यह खासकर जरूरी हो जाता है जहां बच्चों के अधिकारों का हनन पीढ़ी दर पीढ़ी हिंसा में परिवर्तित हो जाता है।



विज्ञप्ति में कहा गया है कि अदम्य व्यक्तिगत साहस और गांधी की परंपरा का पालन करते हुए सत्यार्थी ने कई तरह के विरोध प्रदर्शन आयोजित किए। ये सभी प्रदर्शन शंातिपूर्ण तरीके से आयोजित किए गए जिनमें वित्तीय लाभ के लिए बच्चों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाई गई। इसके साथ ही उन्होंने बाल अधिकार के लिए अंतरराष्ट्रीय करार के विकास के लिए भी योगदान दिया।



कम उम्र की होने के बावजूद मलाला लड़कियों की शिक्षा के लिए पिछले कई वर्ष से संघर्ष कर रही हैं और उन्होंने अपने इस संघर्ष से बच्चों और युवाओं को यह संदेश दिया है कि वे अपनी स्थिति में सुधार लाने के लिए योगदान दे सकते हैं। मलाला ने यह कदम बहुत ही विपरीत और खतरनाक परिस्थितियों में उठाया है। अपने संघष्ाü के दम पर मलाला लड़कियों के शिक्षा के अधिकार की प्रवक्ता बन गई है।



विज्ञप्ति में कहा गया है कि नोबेल समिति इसे हिंदुओं और मुस्लिमों, भारतीय और पाकिस्तान के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मोड़ मानती है जहां वे शिक्षा और चरमपंथ क े खिलाफ एकजुट होकर लड़ सकते हैं। आज दुनिया भर में 16 करोड़ 80 लाख बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैं। वर्ष 2000 में यह संख्या सात करोड़ 80 लाख अधिक थी। पूरी दुनिया अब बाल मजदूरी के खात्मे की ओर बढ़ रही है।



विज्ञप्ति में कहा गया है कि अल्फ्रेड नोबेल ने अपनी वसीयत में लिखा था कि नोबेल शांति पुरस्कार के लिए “देशों के बीच भाईचारा” को भी एक मानदंड बनाया था और शोषण के खिलाफ और बच्चों एवं युवाओं के अधिकार के लिए संघर्ष से उनके इस सपने को यथार्थ में बदलने में योगदान मिला है।



सत्यार्थी ने अपना पुरस्कार बच्चों और अपने सहयोगियों को समर्पित करते हुए वैदिक मंत्र के साथ अपने भाषण की शुरूआत की। उन्होंने कहा, मानवता के इस पवित्र मंच पर “मैं वैदिक मंत्र पढ़ते हुए गर्व महसूस कर रहा हूं” जिसमेें पूरी दुनिया को सभी तकलीफों से मुक्त करने की क्षमता है। किसी को भी छोड़े बिना, पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक शांति स्थापित करने के लिए हम सब एक साथ संघर्ष करें। हम सभी साथ काम करें, साथ बढें ताकि पूरी दुनिया को लाभ हो।



उन्होंने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कहा, मैं अपने माता-पिता की याद करता हूं, अपने देश को याद करता हूं जो स्वर्ग से भी बेहतर है। मैं उन सभी हजारों बच्चों को याद करता हूं जिनकी मुक्ति के जरिए “मैं मुक्ति महसूस करता हूं।” मैंने हमेशा उनके चेहरे को भगवान के जैसा देखा है। मैं यहां निर्दोषों के मौन और रूदन के स्वर का प्रतिनिधित्व करता हूं। मैं उन लाखों बच्चों का प्रतिनिधित्व करता हूं, जो पीछे छूट गए हैं। मैं यहां सभी बच्चों के सपनों और आवाजों को साझा करने आया हूं।



उन्होंने कहा कि सभी महान धर्म बच्चों की देखभाल करने की शिक्षा देते हैं। ईसा मसीह ने कहा था कि सभी बच्चों को मेरे पास आने दो। अपने बच्चों की आंखों से सपने छीनने से बड़ी हिंसा कोई भी नहीं है।



सत्यार्थी ने कहा, मैं यह स्वीकार करने से इनकार करता हूं कि दुनिया इतनी गरीब है क्योंकि यदि एक सप्ताह तक सेना के खर्च को रोक दिया जाए तो इससे सभी बच्चों को शिक्षा मिल जाएगी। उन्होंने बताया कि उनके जीवन का लक्ष्य है कि सभी बच्चे, “बच्चे” की तरह रह सकें। उनका लक्ष्य है कि बच्चे अपना बचपन जीने के लिए मुक्त हों, बढ़ने के लिए मुक्त हों, विकसित होने के लिए मुक्त हों, हंसने के लिए मुक्त हों, खेलने के लिए और सीखने के लिए, स्कूल जाने के लिए और इन सबसे उकपर सपने देखने के लिए मुक्त हों।



उन्होंने कहा कि हालांकि अब भी बड़ी चुनौतियां सामने हैं और सबसे बड़ा संकट तो यह है कि अब भय तथा असहिष्णुता मानवता के दरवाजे खटखटा रही है। हम बच्चों को वह देने में नाकाम रह गए हैं जिनसे उनकी जिंदगी को मायने मिलते हैं। सत्यार्थी ने चेतावनी देते हुए कहा कि वह दिन दूर नहीं जब सभी नाकामियों का परिणाम हिंसा के रूप में मिलेगा और यह मानवता के लिए आत्मघाती सिद्ध होगा।



सत्यार्थी ने अपने साथ पुरस्कार जीतने वाली मलाला को अपनी “बेटी” कहते हुए कहा, एक युवा साहसी लड़की अपने भारतीय पिता से मिली है और एक भारतीय पिता अपनी पाकिस्तानी बेटी से मिला है। लोग अब वैश्वीकरण के युग में जी रहे हैं और यहां लोगों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए हजारों विमान हैं, लेकिन सौहार्द की कमी के कारण लोग गंभीर रूप से एक दूसरे से कटे कटे से हैं। आइये हम सब सौहार्द का वैश्वीकरण करें। आइये हम अपने बच्चों के लिए दुनिया को एकजुट करें।




बाल अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले शख्स हैं सत्यार्थी
अपने अथक प्रयासों से अस्सी हजार से अधिक बच्चों को बाल मजदूरी से निजात दिलाने वाले कैलाश सत्यार्थी को समाज के प्रति उनके इस अमूल्य योगदान के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।


सत्यार्थी भारत में बाल मजदूरी के खिलाफ 1990 से मुहिम छेडे हुए हैं। अपनी इस मुहिम को एक संगठित रूप देने के लिए सत्यार्थी ने “बचपन बचाओ आंदोलन” की शुरूआत की। भारत के मध्य प्रदेश के विदिशा में 11 जनवरी 1954 को पैदा हुए कैलाश सत्यार्थी को बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ और सभी को शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष करने हेतु शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया है।



पेशे से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर कैलाश ने 26 वर्ष की उम्र में ही कैरियर छोड़कर बच्चों के लिए काम करना शुरू कर दिया था। उन्हें बाल श्रम के खिलाफ अभियान चलाकर हजारों बच्चों की जिंदगियां बचाने का श्रेय दिया जाता है।



सत्यार्थी के गृहनगर में जश्न
विदिशा । बचपन बचाओ आंदोलन के जरिए बच्चों की जिंदगी संवारने वाले कैलाश सत्यार्थी को शांति का नोबेल पुरस्कार दिए जाने पर उनके गृह नगर मध्य प्रदेश के विदिशा में जश्न मनाया जा रहा है। आतिशबाजी हो रही है और मिठाइयां बांटी जा रही है।



नार्वे के ओस्लो में आयोजित समारोह में कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। सत्यार्थी की इस उपलब्धि से उनके गृह नगर का हर व्यक्ति अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा है। बुधवार की दोपहर से ही विदिशा में जश्न शुरू हो गया था।



सत्यार्थी के बडे भाई डॉ. जगदीश शर्मा कहते हैं कि आज का दिन उनके लिए जिंदगी का सबसे बड़ा दिन है, क्योंकि आज उनके छोटे भाई को दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान मिला है। उनका भाई उन बच्चों का जीवन संवारने में लगा है, जो बंधन में जीवन जी रहे हैं अथवा बचपन उनसे दूर है। बचपन बचाने के लिए उसके द्वारा बहुत कुछ किया जाना बाकी है।



सत्यार्थी की पोती अरिमा तो फूली नहीं समा रही है। वह कहती है कि उनके दादा का बचपन बचाओ अभियान उसे रोमांचित करता है और प्रेरणा देता है। विदिशा का हर नागरिक सत्यार्थी की इस उपलब्धि से बेहद खुश है।



ओस्लो में जब सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार दिया गया तब विदिशा धमाकों और जयकारों से गूूंज उठा। पटाखे फोडे गए, मिठाइयां बांटी गई और बैंडबाजोंं की धुन पर लोग जमकर थिरके। 

Home / Technology / कैलाश, मलाला को मिला शांति का नोबेल पुरस्कार 

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो