त्योहार

स्नान पर्व : तेरह साल बाद आया विशेष संयोग

शनिवार का दिन धार्मिक दृष्टि से विशेष संयोग और पुण्य फलदायी रहा, 13 साल बाद बैशाख, सत्तू और शनिचरी अमावस्या साथ-साथ आए

Apr 19, 2015 / 09:05 am

कमल राजपूत

होशंगाबाद। शनिवार का दिन धार्मिक दृष्टि से विशेष संयोग और पुण्य फलदायी रहा। 13 साल बाद बैशाख, सत्तू और शनिचरी अमावस्या साथ-साथ आए। इस मौके पर एक लाख से अधिक लोगों ने घाटों पर पहुंचकर नर्मदा में डुबकियां लगाई और मंदिरों में जाकर दर्शन-पूजन किए। दान-धर्म कर गरीबों व असहायों की सेवा की। उन्हें भोजन, खिचड़ी, वस्त्र दान कर शीतल जल व शरबत पिलाया।

भगवान को गेहूं-चने के आटे से बने सत्तू का भोग लगाया गया। सुबह से रात तक शनिचरा वार्ड स्थित ऎतिहासिक शनि मंदिर में भी शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए पूजन-अभिषेक हुए। यहां से भक्त उज्जैन के महाकाल मंदिर भी गए। भक्तों ने भस्म आरती में शामिल होकर श्रृंगार आरती में हिस्सा लिया। इस दौरान नर्मदा के सभी घाटों पर प्रशासन सुरक्षा व्यवस्था में जुटा रहा। सेठानीघाट पर कंट्रोल रूम एवं सीसीटीवी कैमरे से निगरानी रखी गई। नपा अधिकारी-कर्मचारी, पुलिस, होमगार्ड जवानों ने घाट किनारे व्यवस्थाएं संभाली।

सुबह से रात तक रही चहल-पहल : वैशाखी, शनिचरी और सत्तू अमावस्या के योग पर सेठानीघाट, विवेकानंद घाट, परमहंस घाट सहित अन्य घाटों पर सुबह 4 बजे से ही स्नान का दौर शुरू हो गया था, जो देर रात तक चलता रहा। एक लाख से अधिक लोगों ने नर्मदा हर का जयघोष कर डुबकियां लगाई और मंदिरों में पूजन-पाठ कर दान-पुण्य किया।

भगवान को सत्तू का भोग लगाने से मिलती है समृद्धि

ज्योतिषाचार्य पं. सोमेश परसाई ने बताया कि ये संयोग तेरह साल बाद बना है। योग पर उच्च के सूर्य हैं, जो कर्क राशि उच्च के गुरू में है। वैशाख में नए अनाज से बने सत्तू का अमावस्या पर भगवान को भोग लगाया जाता है। इससे अनाज की कमी नहीं रहती। समृद्धि और खुशहाली साल भर बनी रहती है। शनिवार को शनिचरी अमावस्या के स्नान पर्व के रूप में भी मनाया गया। शनि मंदिरों में विशेष पूजन-अभिषेक से भगवान शनि के कोप से मुक्ति मिलती है। पशु-पशुओं को जल एवं अनाज खिलाने का विशेष महत्व था।

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