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दीवाली पर पूजा का ये है शुभ मुहूर्त, ऐसे करें लक्ष्मी-गणेशजी की पूजा

आज दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है, आज के दिन चित्रा, स्वाती नक्षत्र के साथ प्रीति योग भी बन रहा है

Oct 30, 2016 / 09:31 am

सुनील शर्मा

lakshmi ganesh puja

lakshmi ganesh puja

आज दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है। आज के दिन चित्रा, स्वाती नक्षत्र के साथ प्रीति योग भी बन रहा है। प्रदोष काल, स्थिर लग्न तथा कुंभ का स्थिर नवांश होने से लक्ष्मी पूजन का सर्वश्रेष्ठ समय शाम 6.50 से 7.05 बजे तक रहेगा। इस दिन चित्रा, स्वाति नक्षत्र के साथ प्रीतियोग रहेगा। सूर्य, चंद्रमा और बुध का तुला राशि में त्रिकोण होने से लक्ष्मीयोग निर्मित होगा, जो सुख, समृद्धि प्रदान करेगा। पूजा के मुहूर्त निम्न प्रकार रहेंगेः

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ये हैं पूजा के शुभ मुहूर्त

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार चौघडि़या मुहूर्त में शुभ, अमृत व चर-सायं 5.42 बजे से रात्रि 10.34 बजे तक तथा लाभ का चौघडि़या मध्यरात्रि बाद 1.48 बजे से 3.25 बजे तक है। शुभ का चौघडि़या अंतरात 5.02 से प्रात: 6.40 बजे तक रहेगा। वृष लग्न में सायं 6.37 बजे से 8.34 बजे तक एवं सिंह लग्न मध्यरात्रि बाद 1.11 बजे से 3.27 बजे तक लक्ष्मी पूजन किया सकता है।

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पूजन के लिए चार विशेष वृषभ, वृश्चिक, कुंभ और सिंह लग्न मुहूर्त होते हैं। इसमें सबसे ज्यादा पूजन वृषभ (स्थिर लग्न) में होते हैं, लेकिन सिंह लग्न में दीपावली का पूजन ज्यादा श्रेष्ठ माना जाता है।

लक्ष्मी पूजन लग्न अनुसार

वृश्चिक लग्न – प्रात: 7.47 बजे से 9.57 तक
कुंभ लग्न – दोपहर: 1.52 बजे से 3.22 तक
वृषभ लग्न – शाम: 6.32 बजे से 8.22 तक
सिंह लग्न – अर्द्ध रात्रि: 01.02 बजे से 3.12तक

चौघड़िया मुहूर्त
चर का चौघड़िया – सुबह 7.30 बजे से 9 बजे तक चर का
लाभ का चौघड़िया – सुबह 9 बजे से 10.30 तक लाभ का
अमृत का चौघड़िया – दोपहर 10.30 बजे से 12 बजे तक- अमृत का
शुभ का चौघड़िया – शाम 6 बजे से 7.30 बजे तक
शुभ का चौघड़िया – 7.30 बजे से 9 बजे तक
अमृत का चौघड़िया – 9 बजे से 10.30 तक-चर का

ऐसे सजाएं पूजा की थाली
शास्त्रानुसार लक्ष्मी पूजन में तीन थालियां सजानी चाहिए। पहली थाली में 11 दीपक समान दूरी पर रख कर सजाएं। दूसरी थाली में पूजन सामग्री इस क्रम से सजाएं- सबसे पहले धानी (खील), बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चंदन का लेप, सिंदूर कुमकुम, सुपारी और थाली के बीच में पान रखें। तीसरी थाली में इस क्रम में सामग्री सजाएं- सबसे पहले फूल, दूर्वा, चावल, लौंग, इलाइची, केसर-कपूर, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक। इस तरह थाली सजा कर लक्ष्मी पूजन करें।

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ऐसे करें पूजन

चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर पूर्वाभिमुख होकर बैठे। लक्ष्मीजी को चौकी पर विराजमान कर षोड्शोपचार पूजन करें। इसके बाद कुबेर के रूप में तिजोरी व सरस्वती के रूप में बही-खाता, पेन व स्याही का पूजन करें। पूजन के बाद माता की आरती कर उपस्थित सभी लोगों को प्रसाद बांटे।

शास्त्रों के अनुसार माता को कमल का फूल विशेष प्रिय है। कमल पुष्प अर्पित करने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती है। भक्तों को रात्रि के समय श्रीसूक्तम्, लक्ष्मी सूक्तम् व गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए।

इसके बाद पूजन सामग्री पवित्र करने के लिए ओम अपवित्र पवित्रो वा सर्वास्थं गतोपिवा य स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाहृयाभ्यन्तरशुचि: का उच्चारण कर आम के पते से जल पूजा की सामग्री और स्थापित किए गए देवी-देवताओं के ऊपर छिड़कें। इसके बाद षोडशोपचार पूजा करें। पूजा के बाद श्रीसूक्त का पाठ, कनकधारा स्रोत, पुरुषसूक्त, गोपाल सहस्त्रनाम के यथा संख्या में पाठ करना सभी इच्छाओं की पूर्ति करता है।

ऐसे करें लक्ष्मी और श्रीगणेश की पूजा
पूजा के दिन घर को साफ कर पूजा-स्थान को भी पवित्र कर लें और स्वयं भी स्नान आदि कर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक शाम के समय शुभ मुहूर्त में महालक्ष्मी और भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। दिवाली पूजन के लिए किसी चौकी या कपड़े के पवित्र आसन पर गणेशजी के दाहिने भाग में महालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। श्रीमहालक्ष्मीजी की मूर्ति के पास ही एक साफ बर्तन में केसरयुक्त चंदन से अष्टदल कमल बनाकर उस पर कुछ रुपए रखें, एक साथ ही दोनों की विधिवत पूजा करें। उन्हें पुष्प, दीप, धूप, प्रसाद आदि समर्पित कर आरती उतारें।

ऐसे करें मां लक्ष्मी की आरती
आरती के लिए एक थाली में स्वास्तिक आदि मांगलिक चिह्न बनाकर चावल और फूलों के आसन पर शुद्ध घी का दीपक जलाएं। एक अलग थाली में कर्पूर रख कर पूजन स्थान पर रख लें। आरती की थाली में ही एक कलश में जल लेकर स्वयं पर छिड़क लें। पुन: आसन पर खड़े होकर अन्य पारिवारजनों के साथ घंटी बजाते हुए महालक्ष्मीजी की आरती करें। आरती निम्न प्रकार है-
 
ऊं जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता। तुमको निसिदिन सेवत हर विष्णु-धाता।। ऊं…।।
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता। सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।। ऊं…।।
दुर्गारूप निरंजनि, सुख-सम्पत्ति दाता। जो कोई तुमको ध्यावत, रिद्धि-सिद्धि धन पाता।। ऊं…।।
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता। कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधिकी त्राता।। ऊं…।।
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता। सब संभव हो जाता, मन नहिं घबराता।। ऊं…।।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता। खान-पान का वैभव सब तुमसे आता।। ऊं…।।
शुभ-गुण-मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता। रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता।। ऊं…।।
महालक्ष्मी(जी) की आरती, जो कोई नर गाता। उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता।। ऊं…।।

व्यापारी ऐसे करें बहीखातों का पूजन
बहीखाता पर रोली या केसर युक्त चंदन से स्वास्तिक का चिह्न बनाएं और थैली में पांच हल्दी की गांठें, धनिया, कमलगट्टा, चावल, दूर्वा और कुछ रुपए रखकर उससे सरस्वती का पूजन करें। सरस्वती का ध्यान मंत्र निम्न प्रकार हैं-

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।
ऊं वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नम:
 
इसके बाद गंध, फूल, चावल आदि अर्पित कर पूजा करें।

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