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करवा चौथ ही नहीं, सावन के मंगलवार व्रत से भी मिलता है अखंड सौभाग्य

Festival: अखंड सौभाग्य का वरदान देवी गौरी का “मंगलागौरी” व्रत सावन माह के प्रत्येक मंगलवार को किया जाता है

Aug 04, 2015 / 12:56 pm

सुनील शर्मा

karwa chauth vrat

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सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए अखंड सौभाग्य का वरदान देवी गौरी का “मंगलागौरी” व्रत सावन माह के प्रत्येक मंगलवार को किया जाता है। जैसे माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया उसी प्रकार स्त्रियां इस व्रत को करके पति की दीर्घायु का आशीर्वाद पाती हैं।

ये है कथा

प्राचीन काल में एक नगर में एक सेठ अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसके कोई संतान नहीं थी। जिसके लिए वह खूब पूजा-पाठ और दान-पुण्य किया करता था। ईश्वर की कृपा से उसे एक पुत्र हुआ, लेकिन ज्योतिषियों ने बताया कि सोलहवें वर्ष में सांप के डसने से पुत्र मृत्यु का ग्रास बन जाएगा। सेठ को ठेस पहुंचीं, लेकिन सब भगवान भरोसे छोड़ कर कुछ समय बाद अपने पुत्र का विवाह एक संस्कारी कन्या से कर दिया। सौभाग्यवश कन्या की माता सदैव मंगलागौरी के व्रत-पूजन करती थीं। व्रत के प्रभाव से उत्पन्न कन्या को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीष प्राप्त था जिससे सेठ के पुत्र को दीर्घायु प्राप्त हुई।



ऐसे करें मंगलागौरी पूजन

फल, फूलों की मालाएं, लड्डू, पान, सुपारी, इलायची, लौंग, जीरा, धनिया (सभी वस्तुएं 16 की संख्या में होनी चाहिए), साड़ी सहित सोलह श्रृंगार की 16 वस्तुएं, 16 चूडियां, 5 प्रकार के सूखे मेवे, 16 बार 7 प्रकार के धान्य होने चाहिए। श्रावण मास के प्रथम मंगलवार की सुबह, स्नानादि के बाद, “मंगलागौरी” की मूर्ति या तस्वीर को लाल रंग के कपडे में लपेट कर, लकड़ी की चौकी पर रखें। गेंहू के आटे से बने दिए में 16-16 तार की चार बतियां कपडे की बनाकर रखी जाती हैं। श्रीगणेश का पूजन किया जाता है। फिर कलश की और इसके बाद नौ ग्रहों तथा सोलह माताओं की पूजा होती है।

चढाई गई सभी सामग्री ब्राह्मण को दे दी जाती है। मंगलागौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिंदूर, मेहंदी व काजल लगाते हैं। श्रृंगार की 16 वस्तुओं से माता को सजाया जाता है। 16 प्रकार के फूल-पत्ते, माला चढ़ाते हैं, मेवे, सुपारी, लौंग, मेंहदी, चूडियां चढाते हैं। अंत में मंगलागौरी कथा सुनने के बाद विवाहिताएं अपनी सास- ननद को 16 लड्डू देती हैं। यही प्रसाद ब्राह्मण को भी दिया जाता है। अंतिम व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विसर्जित कर दिया जाता है। पांच वर्ष तक व्रत करना चाहिए फिर उद्यापन कर लें।


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