नई दिल्ली। भारत में दांतों के इलाज की जरूरत को लंबे समय तक नजरअंदाज कर दिया जाता है। लोगों के पर्याप्त संसाधनों की कमी है, जैसे कि आवश्यक उपचार का लाभ उठाने के लिए समय, धन और परिवहन के साधनों की कमी। दांतों के इलाज की समुचित सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं।
जानकारी की कमी बन रही बाधा
भारत में ऑरल हेल्थकेयर सेवाओं के विस्तार के समक्ष कई समस्याएं मौजूद हैं। समुदाय की जरूरतों का आकलन करने के लिए प्रामाणिक एवं मान्य आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, इसके अलावा ऑरल हेल्थकेयर सेवाओं की निगरानी के लिए एक संगठित प्रणाली का भी अभाव है। हम जानते हैं कि मुंह की बीमारियां तेजी से फैलती और बढ़ती जाती हैं। ये समस्याएं धीरे-धीरे अधिक जटिल भी हो जाती हैं। इससे भोजन करने की हमारी क्षमता, हमारे रंग-रूप और हमारी बातचीत की शैली भी प्रभावित होती हैं। इस प्रकार की बीमारियां हमारी कार्य कुशलता को भी प्रभावित करती हैं।
बच्चों में दांतों को खराब होना आम बीमारी
आज भारत में ऑरल हेल्थकेयर के आंकड़े बेहद निराशाजनक हैं। बच्चों में दांतों का खराब होना बच्चों की सबसे आम बीमारी है – इसकी संभावना अस्थमा से 5 गुना अधिक है। तंबाकू का सेवन करने वाले, पान मसाला चबाने वाले या धूम्रपान करने वाले किशोर मुंह के भीतर होने वाले जख्मों से पीडि़त हैं। यदि हम आय के आधार पर देखें तो हमें दांतों से संबंधित रोग में काफी असमानता दिखाई देती है। गरीब परिवारों के बच्चे अपने समृद्ध साथियों की तुलना में दांतों के खराब होने की समस्या से दो गुना अधिक पीडि़त होते हैं, साथ ही उनकी बीमारी का इलाज न होने की अधिक संभावना है। बच्चों में मुंह से जुड़ी बीमारियों का सामाजिक प्रभाव भी होता है, क्योंकि दांतों से संबंधित बीमारियों की वजह से बच्चों को हर साल स्कूल से कुछ दिनों के लिए दूर रहना पड़ता है। ऐसी बीमारियों का इलाज नहीं किए जाने की स्थिति में बच्चों को भयंकर दर्द और पीड़ा से गुजरना पड़ सकता है, जिससे उन्हें खाने-पीने, बातचीत करने में समस्या आ सकती है।
प्रतिवर्ष 1,30,000 लोग मुंह के कैंसर के शिकार
95 फीसदी वयस्कों में मसूड़ों से संबंधित बीमारियों के संकेत नजर आते हैं और 60 फीसदी से अधिक वयस्क दांतों के खराब होने की समस्या से पीडि़त हैं। गरीबी में जीवन-यापन करने वाले लोगों के बीच ये आंकड़े बहुत ज्यादा हैं। तंबाकू से संबंधित कैंसर सबसे अधिक प्रचलित हैं। प्रतिवर्ष 1,30,000 लोग मुंह के कैंसर का शिकार होते हैं, जिसका अर्थ है कि इसके कारण भारत में प्रति घंटे लगभग 14 लोगों की मृत्यु होती है।
डेंटल इंश्योरेंस
भारत में दांतों से संबंधित बीमारियों के बोझ को कम करने के लिए डेंटल इंश्योरेंस समय की मांग है। सभी आर्थिक समुदाय के लोगों को दांतों के इलाज में होने वाले खर्च का वहन करने में सक्षम होना चाहिए, जो आमतौर पर काफी अधिक माना जाता है। कम आय वर्ग के लोग मुंह से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं को पूरी तरह से नजरअंदाज कर देते हैं, क्योंकि उनके पास पैसों की कमी होती है। इस समस्या के समाधान के लिए डेंटल इंश्योरेंस को समाज के हर वर्ग तक पहुंचाना जरूरी है। पश्चिमी देशों में डेंटल इंश्योरेंस का चिकित्सा बीमा हेाता है।
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