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कृषि बीमा का प्रीमियम किफायती हो : बैंकर

Published: May 03, 2015 03:41:00 pm

बैंकरों ने कहा कि कृषि
बीमा में भी शिक्षा ऋण जैसी व्यवस्था की जानी चाहिए

Farming insurance india

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नई दिल्ली। बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से फसलों को हुए नुकसान को लेकर देश में चल रही राजनीतिक बहस के बीच बैंकरों ने कृषि बीमा को लोकप्रिय बनाने एवं इसके प्रीमियम को किफायती बनाने की वकालत करते हुए कहा है कि इसके लिए भी शिक्षा ऋण जैसी व्यवस्था की जानी चाहिए। भारतीय बैंक संघ से जुड़े बैंकरों का कहना है कि देश में कृषि बीमा कारोबार का पर्याप्त विकास नहीं हो पाया है और इसके मद्देनजर सरकार को ऎसे नीतिगत उपाय करने चाहिए जिससे इसका प्रीमियम किफायती हो तथा उपकर के माध्यम से इस पर अनुदान मिल सके।

बैंकरों ने शिक्षा ऋण का उदाहरण देते हुए कहा कि शिक्षा ऋण के भुगतान जैसी व्यवस्था होनी चाहिए। विश्लेषकों का कहना है कि अभी कृषि बीमा के तहत सिर्फ एक व्यक्ति को किस क्षेत्र में कितना नुकसान हुआ है के आधार पर दावा किया जा सकता है, जबकि यह ब्लॉक स्तर पर हुए नुकसान के आंकलन के आधार पर होना चाहिए। उनका कहना है कि अभी सिर्फ मूल कृषक के नाम से बीमा की व्यवस्था है, जबकि इसमें बटायीदार या पट्टेधारक और महिलओं को भी शामिल किया जाना चाहिए।

अभी कृषि बीमा के तहत तीन से पांच वर्ष में हुए पैदावार के औसत पर ही दावों का भुगतान होता है जो संबंधित वर्ष में होने वाली वास्तविक पैदावार से कम होता है। देश में अभी दो तरह की कृषि बीमा योजनाएं हैं। मौसम आधारित फसल बीमा योजना और उन्नत फसल बीमा योजना है। मौसम आधारित बीमा के तहत किसानों को बारिश, तापमान में घट बढ़ या इसी तरह की अन्य परिस्थितियों में फसलों को होने वाले नुकसान की भरपाई की जाती है।

उन्नत बीमा योजना के तहत ब्लॉक स्तर पर 50 फीसदी से कम के नुकसान पर दावा नहीं किया जा सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि दोनों येाजनाओं को मिलाकर एक बीमा योजना बनाई जानी चाहिए जो किसानों को हर तरह से फसलों को बीमा उपलब्ध कराने में सक्षम हो। उनका यह भी कहना है कि उन्नत फसल बीमा योजना में ब्लॉक स्तर पर हुए नुकसान को दावा भुगतान का पैमाना माना जाता है, जिसे ग्राम स्तर पर किए जाने की जरूरत है। इसमें निजी क्षेत्र को प्रवेश दिया जाना चाहिए और फसल बीमा पैदावार के अनुसार होनी चाहिए। दावों का निपटान पारदर्शी तरीके से पैदावार के आधार किया जाना चाहिए।

उद्योग संगठन एसोचैम एवं स्काईमेट वेदर के संयुक्त अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक देश में 20 प्रतिशत से कम किसान ही बीमा कराते हैं और उनमें से अधिकांश मौसम से जुड़ा बीमा कराते हैं। बेमौसम बारिश या ओलावृष्टि से होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं होने की वजह से किसानों को आत्महत्या जैसे कदम उठाने पड़ रहे हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर मात्र 19 फीसदी किसान ही अपनी फसलों का बीमा कराते हैं और 81 फीसदी कृषि बीमा कराने के प्रति जागरूक नहीं है। उनमें से 46 फीसदी कृषि बीमा से अवगत है, लेकिन इसमें उनकी कोई रूचि नहीं है, जबकि 24 फीसदी का कहना है कि यह सुविधा उनके लिए है ही नहीं और 11 प्रतिशत ने कहा कि वे कृषि बीमा के प्रीमियम का भुगतान नहीं कर सकते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में अभी 3.2 करोड़ किसानों ने विभिन्न फसलों का बीमा कराया है। इसमें कहा गया है कि सरकार की ओर से सब्सिडी मिलने के बावजूद किसान कृषि बीमा कराने से कतराते हैं जिसका प्रमुख कारण है दावों के निपटान में होने वाली अनावश्यक देरी। उद्योग संगठन ने कहा कि नए बीमा उत्पाद बनाए जाने चाहिए जिसमें दावो का समय पर निपटान हो सके और पारदर्शी तरीके से अधिक किसानों को बीमा का लाभ मिल सके।
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