script…तो इसलिए सावन में नहीं सुनाई देती मल्हारें | secret of sawan jhula not playing in village firozabad news in hindi | Patrika News
फिरोजाबाद

…तो इसलिए सावन में नहीं सुनाई देती मल्हारें

कभी झूला झूलने के साथ ही सहेलियों के बीच दिन व्यतीत हुआ करते

फिरोजाबादJul 25, 2017 / 02:29 pm

Santosh Pandey

sawan jhula

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फिरोजाबाद। सावन का महीना मन में एक नई उमंग जगाता है। विवाहिताएं अपने मायके में झूला झूलते हुए मल्हारें गाती और सावन के महीने के लुत्फ उठाती थी। सावन का महना शुरू होते ही विवाहिताएं अपने मायके आना शुरू कर देती थी। जहां रक्षाबंधन पर्व तक झूला झूलने के साथ ही संग सहेलियों के बीच दिन व्यतीत हुआ करते थे लेकिन अब ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है।

एक माह पहले पड़ जाते थे झूले

शहर के गांव कपावली निवासी पूजा कहती हैं कि रक्षाबंधन के पर्व से एक माह पहले ही पेडों पर झूले पड़ जाते थे। सभी सहेलियां एक जुट होकर झूला झूलने आ जाती थीं। जहां सुबह से शाम हो जाती थी। झूला झूलने के साथ ही गीत गाकर मजे किया करते थे लेकिन अब किसी के पास समय नहीं है। बच्चों के स्कूल होने के कारण पहले से गांव भी नहीं जा सकते। रक्षाबंधन पर्व की एक दिन की छुट्टी मिलती है जिसमें कहां झूलना हो पाता है।

संबंधों में नहीं रही मधुरता

कहीं जमीन को लेकर तो कहीं प्रधानी के चुनावों को लेकर एक गांव में रहने वालों के बीच तनातनी बनी हुई है। इसका असर परिवार में भी देखने को मिलता है। संबंधों में कटुता आ जाने के कारण अब कोई किसी के पास बैठना नहीं चाहता। विवाहिता लक्ष्मी देवी का कहना है कि पहले ससुराल सेे गांव पहुंचने पर गांव की सहेलियां खुश हो जाती थी। गांव में पहुंचते ही इधर-उधर घूमना शुरू हो जाता था। यदि झूला नहीं पड़ा था तो गांव के ही चाचा या भाई से कहकर झूला डलवाते थे।

त्यौहार पर रंजिश निकालते हैं लोग

सुहाग नगर निवासी सरिता देवी कहती हैं कि त्यौहार अब नाम मात्र को रह गए हैं। पहले पूरे गांव के लोग एकजुट होकर त्यौहार मनाते थे। एक दूसरे की मदद के लिए तैयार रहते थे। गांव की बहन और बेटियों को अपनी बेटी मानते थे लेकिन अब समय बदल गया है। वर्तमान स्थिति इसके विपरीत हो गई है।

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