गोण्डा. कहते है कि यदि मेहनत लग्न व दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो निशक्तता भी बौनी पड़ जाती है। दोनों आंख से अंधे राजन बाबू ने जो मिशाल पेश की है उनके जज्बे को भला कौन नहीं सलाम करेगा। वर्ष 2016 में वियतनाम में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय जूडो प्रतियोगिता में कास्य पदक जीत कर अपने माता-पिता के साथ-साथ जिले का नाम रौशन किया है। इन सफलताअों के बाद भी आज इस खिलाड़ी का परिवार झोपड़ी के नीचे जीवन-यापन कर दाने-दाने को मोहताज है।
मूलतः करनैलगंज तहसील के हलधरमऊ विकास खण्ड के गांव हड़ियागाड़ा निवासी राजन सिंह पूरी तरह से नेत्रहीन है। फिर भी इसने बुलंदियों को छूने का सपना हमेशा सजोंये रखा है। अन्ततः अक्टूबर 2016 में वियतनाम में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय जूडो प्रतियोगिता में कास्य पदक जीत कर अपनी निशक्तता को मात दे डाला।
केन्द्र व प्रदेश की सरकार भले ही खिलाड़ियों के प्रोत्साहन के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं चला रही हो लेकिन प्रतिभावान जरूरत मंदों तक यह योजनाएं नहीं पहुंच पाती है। जिससे मुफलिसी व गरीबी के कारण प्रतिभाएं बुलंदियों के छूने के बाद भी यदि दाने-दाने को मोहताज रहे तो यह तन्त्र की विफलता है। एक अदद पीएम आवास के लिए इस खिलाड़ी का पूरा परिवार कई माह से अधिकारियों के चैखट पर दस्तक दे रहा हैं।
राजन की मां ने बताया कि उनके पति हनुमान सिंह की मानसिक स्थित ठीक नहीं है। किसी तरह से उनकी दवा करा रहे है। बच्चे का नाम जब खेल प्रतियोगिता में आया और वियतनाम जाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे तो मैंने न भेजने का फैसला लिया लेकिन कुछ लोगों ने थोड़ा-थोड़ा करके मुझे कर्ज के रूप में चालीस हजार रुपये दिये। तब मैं अपने बच्चे को किसी तरह वियतनाम भेज सकी अभी हम वह कर्ज भी अदा नहीं कर पाई हूं। प्रार्थना पत्र देने के बाद इस परिवार को सीडीओ से इन्साफ मिलने की उम्मीदे बढ़ गयी है।