गोरखपुर. आस्था, परंपरा और उत्साह से ओतप्रोत प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर का खिचड़ी मेला आज से शुरू हो गया। गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने ब्रह्ममुहूर्त में पूजा अर्चना के बाद बाबा गोरखनाथ के अक्षयपात्र में खिचड़ी चढ़ाकर इसकी शुरुआत की। परम्परानुसार सबसे पहले नेपाल राजघराने की खिचड़ी चढ़ाई गई। राजघराने की ओर से वहां के राजपुरोहित द्वारा लाई गई खिचड़ी चढ़ने के बाद आमजन ने बाबा को खिचड़ी चढ़ानी शुरू की।
गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के अनुसार सुबह होने तक करीब 2 लाख लोग बाबा को खिचड़ी चढ़ा चुके थे।
कड़ाके की ठण्ड भी आस्था पर भारी नहीं पड़ रही। बड़े-बुजुर्ग, जवान, महिलाएं हर वर्ग के हज़ारों लोग विभिन्न प्रदेशों, नेपाल के दूरदराज इलाकों से एक दिन पहले ही चलकर यहाँ खिचड़ी चढाने पहुंचे थे। पूरा गोरखपुर एक दिन पहले से ही श्रद्धालुओं से अटा पड़ा है। गोरखनाथ क्षेत्र के कई किलोमीटर तक पैदल चलने वालों का ही रेला दिख रहा है।
इस विश्व प्रसिद्ध मेले में देश-विदेश से आने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए विशेष इंतजामात किये गए हैं। सुरक्षा के लिए पुलिस ड्रोन कैमरे से पल-पल की जानकारी ले रही।
सुरक्षा के लिए चार एसपी,नौ सीओ समेत 1200 सिपाही और होमगार्ड कड़ी निगरानी कर रहे। इसके अलावा मंदिर की तरफ से 9 वाच टावर, 32 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। जबकि पुलिस ने 18 स्थानों पर अतिरिक्त कैमरा लगाया है। मेला को 3 जोन और 9 सेक्टर में बांटकर सुरक्षा के इंतज़ाम किये गए हैं। बिना जांच के किसी को भी अंदर प्रवेश नहीं दिया जा रहा।
उधर, श्रद्धालुओं की मदद के लिए 1500 स्वयं सेवक वहां बने हुए हैं। मेला 24 फरवरी तक चलेगा।
खिचड़ी चढ़ाने की यह है मान्यता
मान्यता है कि गुरू गोरक्षनाथ एक बार हिमाचल के कांगड़ा क्षेत्र में घूमते हुए जा रहे थे। जब वे ज्वाला देवी धाम को देखते हुए वहां से गुजर रहे थे, तब उन्हें देखकर ज्वाला देवी प्रकट हुई और धाम में आतिथ्य स्वीकार करने का आग्रह किया। वहां पर मद्य-मांस का भोग लगता था और गोरक्षनाथ जी योगी थे। लेकिन मां ज्वाला देवी के आग्रह को नकार नहीं सकते थे।
मां ज्वाला देवी ने गुरू गोरक्षनाथ जी से कहा कि आप भिक्षा मांगकर अन्न ले आइये और वे चूल्हा जलाकर पानी गर्म कर रही। देवी ने पात्र में जल भरकर चूल्हे पर चढ़ा दिया, जो आज भी जल रहा है, लेकिन गोरक्षनाथ जी उस स्थान पर लौटकर नहीं पहुंचे। वे भ्रमण करते हुए यहां वर्तमान गोरखपुर आ पहुंचे। त्रेता युग में यह क्षेत्र वन से घिरा हुआ था। गोरक्षनाथ जी को वनाच्छादित यह क्षेत्र तप करने के लिये अच्छा लगा और वो यहां तप करने लगे। भक्तों ने गुरू गोरक्षनाथजी के लिये एक कुटिया बना दी। उन्होंने गोरक्षनाथ जी के पात्र में खिचड़ी भरना शुरू किया। यह मकरसंक्रांति की तिथि थी। बस तभी से हर साल गोरक्षनाथ मंदिर में खिचड़ी का महापर्व मनाया जाता है। उसी समय से गोरक्षनाथ मंदिर में खिच़ड़ी मेला लगता है।