scriptभक्त को बचाने के लिए देवी मां ने छ: बार तोड़ा फांसी का फंदा, अंग्रेज भी हुए हैरान | Maa durga six times broked hanging noose for saved devotees life in gorakhpur | Patrika News

भक्त को बचाने के लिए देवी मां ने छ: बार तोड़ा फांसी का फंदा, अंग्रेज भी हुए हैरान

locationगोरखपुरPublished: Oct 08, 2016 09:17:00 pm

Submitted by:

तरकुलवा देवी का ऐसा है प्रताप, नवरात्र में होती है मुरादें पूरी

devotees life saved

devotees life saved

गोरखपुर. घने जंगलो में विराजमान तरकुलहा माई का दरबार अब हर साल आने वाले हजारों लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का तीर्थ बन चुका है। तरकुल के पेड़ के नीचे विराजी माता का भव्य मंदिर सबकी मुरादें पूरी कर रहा है। हर साल लाखों श्रद्धालु मां का आशीर्वाद पाने के लिए आते हैं। मां भगवती का यह मंदिर कभी स्वतंत्रता संग्राम का भी एक प्रमुख हिस्सा रहा है। गोरखपुर से 20 किलोमीटर दूर देवीपुर गांव में मां तरकुलहा देवी का यह प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। इस मंदिर के महात्मा के बारे में लोग बताते हैं कि मन से जो भी मुराद मांगी जाए वह पूरी होती हैं। दूर दराज से आए भक्त मां से मन्नतें मांगते हैं। जब पूरी हो जाती है तो यहां मंदिर में घंटी बांधने की परम्परा है। मंदिर परिसर में चारों ओर घंटियां देखने को मिल जाएगी। मन्नतें पूरा होने पर लोग अपनी क्षमता के अनुसार घंटी बांधते हैं। वैसे तो यहां आने वालों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि में विशेष रूप से आस्थावान श्रद्धालु आते हैं।


बकरे के मीट का बनता है प्रसाद
तरकुलहा देवी मंदिर में बकरा चढ़ाने की परम्परा है। लोग मन्नते मांगने आते हैं और पूरी होने के बाद यहां बकरे की बलि चढ़ाते हैं। फिर वहीं मिट्टी के बर्तन में उसे बनाते हैं और प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं।


आजादी से जुड़ा हुआ है यह मंदिर
मां अपने भक्तों की रक्षा हर जगह करती हैं। आजादी की लड़ाई से भी इस मंदिर का इतिहास जुड़ा है। अंग्रेज भारतीयों पर बहुत अत्याचार करते थे। डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह बहुत बड़े देशभक्त थे। वह अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंके हुए थे। बंधु सिंह मां के भी बहुत बड़े भक्त थे। 1857 के आसपास की बात है, जब पूरे देश में आजादी की पहली हुंकार देश में उठी।


गोरिल्ला युद्ध में माहिर बाबू बंधू सिंह भी उसमें शामिल हो गए। वह घने जंगल में अपना ठिकाना बनाए हुए थे। जंगल में घना जंगल था। जंगल से ही गुर्रा नदी गुजरती थी। उसी जंगल में बंधु एक तरकुल के पेड़ के नीचे पिंडियों को बनाकर मां भगवती की पूजा करते थे। अंग्रेजों से गुरिल्ला युद्ध लड़ते और मां के चरणों में उनकी बलि चढ़ाते। इसकी भनक अंग्रेजों को लग गई। उन्होंने अपने गुप्तचर लगाए। अंग्रेजों की चाल कामयाब हुई और एक गद्दार ने बाबू बंधू सिंह के गुरिल्लाा युद्ध और बलि के बारे में जानकारी दे दी। फिर अंग्रेजों ने जाल बिछाकर वीर सेनानी को पकड़ लिया।


छह बार टूटा फांसी का फंदा
तरकुलहा देवी के भक्त बाबू बंधु सिंह पर अंग्रेजों ने मुकदमा चलाया। अंग्रेजी जज ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई। फिर उनको सार्वजनिक रूप से फांसी देने का फैसला लिया गया, ताकि कोई फिर बगावत न कर सके। 12 अगस्त 1857 को पूरी तैयारी कर बाबू बंधु सिंह के गले में जल्लाद ने जैसे ही फंदा डालकर लीवर खींचा फंदा टूट गया । छह बार जल्लाद ने फांसी पर उनको चढ़ाया, लेकिन हर बार मजबूत से मजबूत फंदा टूटता गया। अंग्रेज परेशान हो गए। जल्लाद भी पसीनेे पसीने होने लगा। जल्लाद गिड़गिड़ाने लगा कि अगर वह फांसी नहीं दे सका, तो उसे अंग्रेज फांसी पर चढ़ा देंगे। इसके बाद बंधु सिंह ने मां तरकुलहा देवी को गुहार लगाई और प्रार्थना किया कि उनको फांसी पर चढ़ जाने दें। उनकी प्रार्थना के बाद सातवीं बार जल्लाद ने जब फांसी पर चढ़ाया, तो उनकी फांसी हो सकी। इस घटना के बाद मां तरकुलहा देवी का महात्म दूर दराज तक पहुंचा और धीरे-धीरे भक्तों का रेला वहां पहुंचने लगा।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो