गोरखपुर. रामप्रवेश को एक छत की दरकार है। मजदूरी करने वाले यह बुजुर्ग किसी तरह घर खर्च चला लेते हैं, अपनी कमाई से पक्का घर तो इनके लिए सपना ही है। किसी ने सलाह दी कि सरकार पक्का मकान बनवाने के लिए धन दे रही तो ब्लॉक से लेकर विकास भवन तक प्रार्थना पत्र लेकर दौड़ लगाने लगे। छह महीने में कोई सप्ताह नहीं बीतता जब ये किसी साहबान के दरबार में अपनी अर्जी न पहुंचाए लेकिन आश्वासन के सिवाय हासिल कुछ नहीं होता।
रामप्रवेश तो एक अदद आवास को तरस रहे गरीबजन का प्रतीक भर हैं। ज़िले के विकास का खांका तैयार करने वाले विकास भवन में रोज़ बी रोज़ न जाने कितने रामप्रवेश एक उम्मीद के साथ आते हैं। लेकिन उनकी उम्मीद बड़ों की सिफारिश और रसूख के आगे दम तोड़ देती है। आवास के लिए कहने को तो सरकार ने तमाम योजनाएं पिछले कई दशकों में चलाई लेकिन छतविहीन गरीबों की संख्या में कोई ख़ास तब्दीली नहीं हो सकी।
अभी कुछ साल पहले समाजवाद के पुरोधा डॉ.लोहिया के नाम पर समाजवादी सरकार ने आवास योजना की शुरुआत की। लोहिया आवास योजना के नाम से शुरू इस योजना में जनप्रतिनिधियों को भी दस दस आवास आवंटित करने का अधिकार दिया गया। परंतु रामप्रवेश जैसे गरीब न तो बड़े साहबों से लाभ पा सके हैं न ही अपने चुने हुए नेता के कोटे से।
आधिकारिक सूत्रों की मानें तो चुनावी रंग में सरोबार हो चुके जनप्रतिनिधि पिछले तीन महीने में दस पात्र गरीबों को नहीं खोज सके हैं। यह बात दीगर है कि इन माननीयों ने कई बार सूची भेजी है लेकिन उस सूची में पात्र कम इनके चहेतों के नाम रहते। जब सत्यापन होने की नौबत आती तो ये नाम खुद ब खुद सूची को अप्रासंगिक कर देते। डीआरडीए के पास अब तो पात्रों की कम अपात्रों की लंबी फेहरिश्त हो गई है।
परियोजना निदेशक यशवंत सिंह कहते हैं कि दस दस आवास आवंटन का कोटा माननीयों के पास है। कई बार सूची तो विभाग को मिली लेकिन उसमें पात्र गरीब नहीं मिले। विभाग के सत्यापन में सूची के नाम खरे नहीं उतर पा रहे।
बता दें गोरखपुर ज़िले में 9 विधानसभा क्षेत्र हैं। इसमें एक शहरी क्षेत्र है। बाकी 8 विधायकों का अधिकतर क्षेत्र ग्रामीण इलाका ही है।
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